"भूरिश्रवा" के अवतरणों में अंतर

 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
जिस समय भूरिश्रवा सात्यकि का वध करने वाला था, तभी अर्जुन ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, न वह यह देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं, न अर्जुन ने ही ऐसा विचार किया। अपने मित्र का अहित करने वाले सशस्त्र सैनिक पर वार करना न्यायसंगत है। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर अर्जुन की ओर भूरिश्रवा ने फेंका, पृथ्वी पर माथा टेक कर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी। अर्जुन तथा कृष्ण ने उसे निर्मल लोकों में [[गरुड़]] पर आरूढ़ होकर विचरने का आशीर्वाद दिया। वे दोनों ही भूरिश्रवा के वीरत्व तथा धर्मपरायणता के प्रशंसक थे।
 
जिस समय भूरिश्रवा सात्यकि का वध करने वाला था, तभी अर्जुन ने [[कृष्ण]] की प्रेरणा से भूरिश्रवा की बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, न वह यह देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं, न अर्जुन ने ही ऐसा विचार किया। अपने मित्र का अहित करने वाले सशस्त्र सैनिक पर वार करना न्यायसंगत है। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर अर्जुन की ओर भूरिश्रवा ने फेंका, पृथ्वी पर माथा टेक कर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी। अर्जुन तथा कृष्ण ने उसे निर्मल लोकों में [[गरुड़]] पर आरूढ़ होकर विचरने का आशीर्वाद दिया। वे दोनों ही भूरिश्रवा के वीरत्व तथा धर्मपरायणता के प्रशंसक थे।
 
==कथा==
 
==कथा==
जब सात्यकि भूरिश्रवा के पाश से छूटा तो अर्जुन तथा कृष्ण के मना करने पर भी उसका वध किये बिना न रह पाया। भूरिश्रवा को ऊर्ध्वलोक की प्राप्ति हुई। ध्वज पर 'यूप' (चक्र अथवा गांठ) का चिह्न होने के कारण भूरिश्रवा 'यूपध्वज' भी कहलाता है। सात्यकि परमवीर योद्धा था। वह किसी भी प्रकार [[अर्जुन]] तथा [[कृष्ण]] से कम वीर नहीं कहा जा सकता। भूरिश्रवा ने उसका अपमान करने की जो क्षमता प्राप्त की थी, उसकी अपूर्व कथा है। अतीत काल में महर्षि अत्रि के पुत्र सोम हुए, सोम के पुत्र बुध, बुध के पुरुरवा; पुरुरवा के आयु, आयु के नहुष, इसी प्रकार से उस कुल की परम्परा पुरुरवा, आयु, नहुष, ययाति, यदु, देवमीढ़, शूर, वसुदेव, शिनि तक चलती चली गई। देवक की पुत्री [[देवकी]] को शिनि ने वसुदेव के लिए जीतकर अपने रथ पर बैठा लिया। सोमदत्त ने वसुदेव को युद्ध के लिए ललकारा। शिनि ने सोमदत्त को पृथ्वी पर पटककर उसकी चोटी पकड़ ली, फिर दयापूर्वक उसे छोड़ दिया। सोमदत्त ने लज्जास्पद स्थिति का बदला लेने के लिए शिव की तपस्या की और वर मांगा कि उसे एक वीर पुत्र की प्राप्ति हो, जो कि शिनि के पुत्र को सहस्रों राजाओं के बीच में अपमानित करके पृथ्वी पर गिरा दे तथा पैरों से मारे। शिव ने कहा कि वह पहले ही शिनि के पुत्र को वरदान दे चुके हैं कि उसे त्रिलोक में कोई भी नहीं मार सकेगा। अत: सोमदत्त का पुत्र उसे मूर्च्छित भर कर पायेगा। उस वरदान के फलस्वरूप ही भूरिश्रवा (सोमदत्त का पुत्र) सात्यकि (शिनि पुत्र) को रणक्षेत्र में भूमि पर पटककर उस पर लात से प्रहार कर पाया। भूरिश्रवा के पिता सोमदत्त को उसके वध का ज्ञान हुआ तो वह अत्यन्त ही रुष्ट होकर [[सात्यकि]] से युद्ध करने पहुँचा। हाथ कटे व्यक्ति को मारना उसके अनुसार अधर्म था। सात्यकि के सहायक श्रीकृष्ण तथा अर्जुन थे, अत: सोमदत्त बुरी तरह से पराजित हो गया।
+
जब सात्यकि भूरिश्रवा के पाश से छूटा तो अर्जुन तथा कृष्ण के मना करने पर भी उसका वध किये बिना न रह पाया। भूरिश्रवा को ऊर्ध्वलोक की प्राप्ति हुई। ध्वज पर 'यूप' (चक्र अथवा गांठ) का चिह्न होने के कारण भूरिश्रवा 'यूपध्वज' भी कहलाता है। सात्यकि परमवीर योद्धा था। वह किसी भी प्रकार [[अर्जुन]] तथा [[कृष्ण]] से कम वीर नहीं कहा जा सकता। भूरिश्रवा ने उसका अपमान करने की जो क्षमता प्राप्त की थी, उसकी अपूर्व कथा है। अतीत काल में महर्षि अत्रि के पुत्र सोम हुए, सोम के पुत्र [[बुध |बुध]], बुध के पुरुरवा; पुरुरवा के आयु, आयु के नहुष, इसी प्रकार से उस कुल की परम्परा पुरुरवा, आयु, नहुष, ययाति, यदु, [[देवमीढ़]], शूर, वसुदेव, शिनि तक चलती चली गई। देवक की पुत्री [[देवकी]] को शिनि ने वसुदेव के लिए जीतकर अपने रथ पर बैठा लिया। सोमदत्त ने वसुदेव को युद्ध के लिए ललकारा। शिनि ने सोमदत्त को पृथ्वी पर पटककर उसकी चोटी पकड़ ली, फिर दयापूर्वक उसे छोड़ दिया। सोमदत्त ने लज्जास्पद स्थिति का बदला लेने के लिए शिव की तपस्या की और वर मांगा कि उसे एक वीर पुत्र की प्राप्ति हो, जो कि शिनि के पुत्र को सहस्रों राजाओं के बीच में अपमानित करके पृथ्वी पर गिरा दे तथा पैरों से मारे। शिव ने कहा कि वह पहले ही शिनि के पुत्र को वरदान दे चुके हैं कि उसे त्रिलोक में कोई भी नहीं मार सकेगा। अत: सोमदत्त का पुत्र उसे मूर्च्छित भर कर पायेगा। उस वरदान के फलस्वरूप ही भूरिश्रवा (सोमदत्त का पुत्र) सात्यकि (शिनि पुत्र) को रणक्षेत्र में भूमि पर पटककर उस पर लात से प्रहार कर पाया। भूरिश्रवा के पिता सोमदत्त को उसके वध का ज्ञान हुआ तो वह अत्यन्त ही रुष्ट होकर [[सात्यकि]] से युद्ध करने पहुँचा। हाथ कटे व्यक्ति को मारना उसके अनुसार अधर्म था। सात्यकि के सहायक श्रीकृष्ण तथा अर्जुन थे, अत: सोमदत्त बुरी तरह से पराजित हो गया।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{महाभारत}}
 
{{महाभारत}}
[[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:महाभारत के चरित्र]]
+
[[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:Article Pages]][[Category:महाभारत के चरित्र]][[Category:Article Pages]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

03:02, 14 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण

भूरिश्रवा सोमदत्त का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में भूरिश्रवा की सात्यकि के साथ अनेक बार मुठभेड़ हुई थीं। युद्ध के पांचवें दिन भूरिश्रवा ने सात्यकि के दस पुत्रों को मार डाला। युद्ध के चौदहवें दिन जयद्रथ को मारने के लिए गये हुए अर्जुन को ढूँढता हुआ तथा कौरवों की सेना में उथल-पुथल मचाता हुआ सात्यकि, भूरिश्रवा से पुन: जूझने लगा था। सात्यकि का रथ खण्डित हो गया था। वह मल्ल युद्ध में व्यस्त था। सात्यकि प्रात:काल से युद्ध करने के कारण बहुत थक गया था। भूरिश्रवा ने उसे उठाकर धरती पर पटक दिया तथा उसकी चोटी को पकड़कर तलवार निकाल ली।

अर्जुन का वार

जिस समय भूरिश्रवा सात्यकि का वध करने वाला था, तभी अर्जुन ने कृष्ण की प्रेरणा से भूरिश्रवा की बांह पर ऐसा प्रहार किया कि वह कटकर, तलवार सहित अलग जा गिरी। भूरिश्रवा ने कहा कि यह न्यायसंगत नहीं था कि जब वह अर्जुन से नहीं लड़ रहा था, तब अर्जुन ने उसकी बांह काटी। अर्जुन ने प्रत्युत्तर में कहा कि भूरिश्रवा अकेले ही अनेक योद्धाओं से लड़ रहा था, न वह यह देख सकता था कि कौन उससे लड़ने के लिए उद्यत है और कौन नहीं, न अर्जुन ने ही ऐसा विचार किया। अपने मित्र का अहित करने वाले सशस्त्र सैनिक पर वार करना न्यायसंगत है। अपने बायें हाथ से कटा हुआ दायां हाथ उठाकर अर्जुन की ओर भूरिश्रवा ने फेंका, पृथ्वी पर माथा टेक कर प्रणाम किया तथा युद्धक्षेत्र में ही समाधि लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर दी। अर्जुन तथा कृष्ण ने उसे निर्मल लोकों में गरुड़ पर आरूढ़ होकर विचरने का आशीर्वाद दिया। वे दोनों ही भूरिश्रवा के वीरत्व तथा धर्मपरायणता के प्रशंसक थे।

कथा

जब सात्यकि भूरिश्रवा के पाश से छूटा तो अर्जुन तथा कृष्ण के मना करने पर भी उसका वध किये बिना न रह पाया। भूरिश्रवा को ऊर्ध्वलोक की प्राप्ति हुई। ध्वज पर 'यूप' (चक्र अथवा गांठ) का चिह्न होने के कारण भूरिश्रवा 'यूपध्वज' भी कहलाता है। सात्यकि परमवीर योद्धा था। वह किसी भी प्रकार अर्जुन तथा कृष्ण से कम वीर नहीं कहा जा सकता। भूरिश्रवा ने उसका अपमान करने की जो क्षमता प्राप्त की थी, उसकी अपूर्व कथा है। अतीत काल में महर्षि अत्रि के पुत्र सोम हुए, सोम के पुत्र बुध, बुध के पुरुरवा; पुरुरवा के आयु, आयु के नहुष, इसी प्रकार से उस कुल की परम्परा पुरुरवा, आयु, नहुष, ययाति, यदु, देवमीढ़, शूर, वसुदेव, शिनि तक चलती चली गई। देवक की पुत्री देवकी को शिनि ने वसुदेव के लिए जीतकर अपने रथ पर बैठा लिया। सोमदत्त ने वसुदेव को युद्ध के लिए ललकारा। शिनि ने सोमदत्त को पृथ्वी पर पटककर उसकी चोटी पकड़ ली, फिर दयापूर्वक उसे छोड़ दिया। सोमदत्त ने लज्जास्पद स्थिति का बदला लेने के लिए शिव की तपस्या की और वर मांगा कि उसे एक वीर पुत्र की प्राप्ति हो, जो कि शिनि के पुत्र को सहस्रों राजाओं के बीच में अपमानित करके पृथ्वी पर गिरा दे तथा पैरों से मारे। शिव ने कहा कि वह पहले ही शिनि के पुत्र को वरदान दे चुके हैं कि उसे त्रिलोक में कोई भी नहीं मार सकेगा। अत: सोमदत्त का पुत्र उसे मूर्च्छित भर कर पायेगा। उस वरदान के फलस्वरूप ही भूरिश्रवा (सोमदत्त का पुत्र) सात्यकि (शिनि पुत्र) को रणक्षेत्र में भूमि पर पटककर उस पर लात से प्रहार कर पाया। भूरिश्रवा के पिता सोमदत्त को उसके वध का ज्ञान हुआ तो वह अत्यन्त ही रुष्ट होकर सात्यकि से युद्ध करने पहुँचा। हाथ कटे व्यक्ति को मारना उसके अनुसार अधर्म था। सात्यकि के सहायक श्रीकृष्ण तथा अर्जुन थे, अत: सोमदत्त बुरी तरह से पराजित हो गया।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः