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'''अभिशाह''' [[महाभारत]] कालीन एक बर्बर जाति थी। महाभारत युद्ध के दौरान दसवें दिन [[दु:शासन]] के ललकारने पर इस जाति के लोग [[अर्जुन]] पर हमला कर देते हैं।
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'''अभिशाह''' [[महाभारत]] कालीन एक बर्बर जाति थी। महाभारत युद्ध के दौरान दसवें दिन [[दु:शासन]] के ललकारने पर इस जाति के लोगों ने [[अर्जुन]] पर हमला कर दिया था।
  
 
*महाभारत युद्ध के पहले दिन इन्हें [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के पीछे अनुगमन करते बताया गया है।
 
*महाभारत युद्ध के पहले दिन इन्हें [[धृतराष्ट्र]] के पुत्रों के पीछे अनुगमन करते बताया गया है।
*[[दुर्योधन]] के कथनानुसार दसवें दिन [[जयद्रथ]] का बचाव करते हुए इनका हनन होता है।
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*[[दुर्योधन]] के कथनानुसार दसवें दिन [[जयद्रथ]] का बचाव करते हुए अभिशाह लोगों का हनन होता है।
*[[युधिष्ठिर]] और [[भीम]] इन पर प्रहार करते हैं।
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*[[युधिष्ठिर]] और [[भीम]] अभिशाह लोगों पर प्रहार करते हैं।
 
*15वें दिन के पश्चात् [[संजय]] धृतराष्ट्र को बताता है कि अभिशाह जाति का सफाया हो चुका है।<ref>[[महाभारत]], [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]], अध्याय 117, 18, 106, 119. महाभारत, [[द्रोणपर्व महाभारत|द्रोणपर्व]], अध्याय 91, 93, 150, 157, 161 तथा [[कर्णपर्व महाभारत|कर्णपर्व]], अध्याय 6।</ref>
 
*15वें दिन के पश्चात् [[संजय]] धृतराष्ट्र को बताता है कि अभिशाह जाति का सफाया हो चुका है।<ref>[[महाभारत]], [[भीष्मपर्व महाभारत|भीष्मपर्व]], अध्याय 117, 18, 106, 119. महाभारत, [[द्रोणपर्व महाभारत|द्रोणपर्व]], अध्याय 91, 93, 150, 157, 161 तथा [[कर्णपर्व महाभारत|कर्णपर्व]], अध्याय 6।</ref>
 
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अभिशाह महाभारत कालीन एक बर्बर जाति थी। महाभारत युद्ध के दौरान दसवें दिन दु:शासन के ललकारने पर इस जाति के लोगों ने अर्जुन पर हमला कर दिया था।

  • महाभारत युद्ध के पहले दिन इन्हें धृतराष्ट्र के पुत्रों के पीछे अनुगमन करते बताया गया है।
  • दुर्योधन के कथनानुसार दसवें दिन जयद्रथ का बचाव करते हुए अभिशाह लोगों का हनन होता है।
  • युधिष्ठिर और भीम अभिशाह लोगों पर प्रहार करते हैं।
  • 15वें दिन के पश्चात् संजय धृतराष्ट्र को बताता है कि अभिशाह जाति का सफाया हो चुका है।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-1 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 54 |

  1. महाभारत, भीष्मपर्व, अध्याय 117, 18, 106, 119. महाभारत, द्रोणपर्व, अध्याय 91, 93, 150, 157, 161 तथा कर्णपर्व, अध्याय 6।

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