गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 9
यही सब देवता हैं। शास्त्रों में, वेदों में, इन्हीं को देवता कहा गया है। इनसे हमारे व्यवहार के सब काम चलते हैं। ऊर्जा कहाँ से मिलेगी? विद्युत शक्ति कहाँ से मिलेगी? या तो आपके पक्ष में अग्नि हो या आपके पक्ष में सूर्य हो। तब आप ऊर्जा प्राप्त कर सकेंगे। जल से भी प्राप्त कर सकेंगे। इसका अर्थ है कि समग्र दृष्टि से ही हमको भगवान की आराधना करनी चाहिए। केवल एक-एक अंग पर ध्यान दिया - अन्न बहुत पैदा हुआ और उद्योग मिट गये और उद्योग पर ध्यान दे दिया कृषि मिट गयी। पहनने को कपड़ा चाहिए तो खाने को अन्न भी तो चाहिए न। और अन्न, कपड़े पर ध्यान दिया, दवा मिलनी बन्द हो गयी। तो यह एक-एक देवता की जो आराधना है वह ऐसी ही है। अश्विन कुमार की और अन्न ब्रह्म की आराधना छूट गयी। तो समग्र दृष्टि से सब काम करना चाहिए - सांगोपांग हो। इसके बाद - आप देवता के संकल्प से करते हैं, पितर के संकल्प से करते हैं, भूत के संकल्प से करते हैं या भगवान के संकल्प से करते हैं। व्रत माने संकल्प। आपके हृदय में संकल्प क्या है? देवता के लिए, पितर के लिए, भूत के लिए है या सबके अन्तर्यामी, सबमें रहने वाले, जो देवता में भी हैं उनके लिए हैं? आपने पंखे पर बहुत ध्यान दिया और रोशनी देने वाला बल्ब बुझ गया और बल्ब पर बहुत ध्यान दिया पंखा चलना बन्द हो गया। तो आपको बिजली पर ध्यान देना चाहिए। बिजली बनी रहे - वह अन्तर्यामी है। पंखे का अन्तर्यामी कौन है? बोले बिजली। बल्ब का अन्तर्यामी कौन है? बोले बिजली। आपके घर में बिजली रहे तो ये सब काम ठीक-ठीक चलेंगे। इसी प्रकार यदि भगवान पर दृष्टि रहे तो आपके सब अंग, आपकी सब इन्द्रिय, आपका मन आपका समग्र विश्व ठीक-ठीक काम करेगा। क्योंकि भगवान सम्पूर्ण विश्व के मालिक हैं। सम्पूर्ण विश्व के संचालक हैं, अन्तर्यामी हैं। अब एक प्रश्न यह उठा कि भगवान बहुत बड़े हैं तब तो अन्तर्यामी हैं और सब यज्ञों के भोक्ता हैं, प्रभु हैं, तो उनकी आराधना थोड़ी कठिन होगी। छोटे-मोटे सिपाही से मिलना हो तो चौराहे पर ही मिल लेते हैं। किन्तु गृहमन्त्री से मिलना हो तो उनकी इजाजत लेनी पड़ती है। राष्ट्रपति से, सम्राट से मिलना हो तो कठिन पड़ता है। हमको दस वर्ष पहले एक उद्योगपति ने बताया था कि महाराज, हम लोगों का निश्चित है कि किसकी तनखाह पर दस गुना रिश्वत दिया जाये तो वह मान जायेगा। यह तो पहले की बात है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज