गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-4 : अध्याय 7
प्रवचन : 3
अम्ब त्वामनुसन्दधामि अपने हृदय को शुद्ध करने के लिए अनुसन्धान करें। हृदय की शुद्धि ही अर्थ को भी शुद्धि करती है, काम को शुद्ध करती है। धर्म को परिपूर्ण बनाती है और मोक्ष की योग्यता देती है। यह अध्यात्मशास्त्र हृदय की शुद्धि के लिए होता है। यदि आपका उद्देश्य है हृदय को शुद्ध करना, तो अध्यात्मशास्त्र के श्रवण से, मनन से, निदिध्यासन से तत्काल लाभ होता है। जैसे आप यज्ञ करें, दान करें, धर्म करें तो उससे एक अपूर्व उत्पन्न होता है और वह इस जन्म में, परलोक में उससे फल का उदय होता है। यह आधिदैविक शास्त्र है धर्मशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र वह है जो अपूर्व को उत्पन्न किये बिना तत्काल अन्तःकरण को शुद्ध करता है। धर्मानुष्ठान अन्तःकरण में एक अपूर्व उत्पन्न कर देता है और उससे इसी जन्म में आगे चलकर या दूसरे जन्म में या परलोक में आप को उसका फल, सुख मिलेगा और यह अध्यात्मशास्त्र इसी समय अन्तःकरण को शुद्ध करके उसमें जो परमानन्दघन परमात्मा है, उसके अनुभव की योग्यता उत्पन्न हरता है। इसलिए भक्तिशास्त्र, ज्ञानशास्त्र- अध्यात्मशास्त्र हैं। धर्म शास्त्र की दूसरी है। यदि कोई वेद पढ़े और उसके अनुसार अनुष्ठान न करे तो वेदज्ञान सफल नहीं होता। ब्रह्मज्ञान केवल ज्ञान मात्र से ही अपने स्वरूप का साक्षात्कार करा देता है। इसी से इसे परा वि़द्या बोलते हैं, यह अपरा विद्या नहीं है। वेद कर्मकाण्डात्मक वेद होने से अपरा विद्या है। उसका फल बाद में होता है। उपनिषद् परा विद्या है, इसका फल तत्काल उदय होता है अन्तःकरण में। अब सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी महिमा का सविशेष वर्णन किया है। क्योंकि माहात्म्य-ज्ञानपूर्वक जो भक्ति होती है वही सच्ची भक्ति होती है। कोई सुन्दरता देखकर कि यह मूर्ति बड़ी सुन्दर है, यह चित्र बड़ा सुन्दर है, श्रृंगार देखकर, स्वच्छता देखकर जो प्रेम होगा, जो भक्ति होगी, वह यदि कहीं देखेंगे कि श्रृंगार में कमी है, स्वच्छता में कमी है, सुन्दरता में कमी है तो वह भक्ति, वह प्रेम टूट जायेगा। उदारता, प्रेम-गुण देखकर प्रेम किया जायेगा तो एक दिन देखेंगे वह बड़ा कृपण है। सुन्दरता देखकर यदि प्रेम किया तो मुँहा से निकल आये फिर? तलाक हो जायेगा। सुन्दरता देखकर, मधुरता बाहरी चाकचिक्य देखकर जो प्रेम होगा, उसमें परिवर्तन होने की सम्भावना रहती है। माहाम्य-ज्ञानपूर्वक जो प्रेम होता है वह प्रेम स्थायी होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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