गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-4 : अध्याय 7
प्रवचन : 2
अम्ब त्वामनुसन्दधामि भगवद्गीते गीता माता है। आब ! अम्बा शब्द कैसे बनता है। अभिवण्र्ये-वर्णात्मिका माता है। शब्द के रूप में माता है। भगवान् के श्री मुख से वागदेवी प्रकट हुई हैं। उनके हृदय में जो सम्पूर्ण विश्व के प्रति मातृत्व है, पितृत्व है, सख्यत्व है वह वाणी का रूप धारण करके प्रकट हुआ है। गीता में हृदयं पार्थ। अर्जुन से भगवान कहते हैं- अर्जुन! यह मेरा हृदय है। मैं गीता तुम्हें दे रहा हूँ। इतना ही नहीं- मैं अपना हृदय शब्दों में बाँधकर-रखकर तुम्हे दे रहा हूँ। गीता-माहात्म्य में इस पद का प्रयोग हुआ है- गीता से हृदयं पार्थ। पाँच बात बतायी गयी हैं। एक तो अपना काम करते रहो योगं युंजन्। जो साधन करते हो, जो अभ्यास करते हो, जो कर्म करते हो उस कर्म को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, बदलने की आवश्यकता नहीं है। तब नयी बात क्या हुई? कर्म करो लेकिन आसक्ति मुझसे रखो- कर्म से और कर्म फल से नहीं। कर्मका फल देना भगवान के हाथ में है। क्या कर्म स्वयं में इतना बढ़िया नहीं है, इतना पूर्ण नहीं है कि उसको करते जायें और आनन्द लेते जायें। कर्म करने के बाद आनन्द को फेंक देना- कर्म का सूखा बना देना। यदि हम कर्म के फल को बाद के लिए फेंक देते हैं तो कर्म को नीरस बना देना है। यों ही कर्म करते समय यदि पीछे की ओर देखतें हैं, तब तो भूत लगा हुआ है और कर्म के फल को यदि आगे फेंक देते हैं तो कर्म स्वयं में नीरस हो जाता है। इसलिए कर्म में योग चाहिए। इसीलिए कहा है-योगं युंजन। पूरी तरह से कर्त्तव्य पालन करते चलो ओर उसका रस लेते चलो। अच्छा काम करना स्वयं में परमानन्द है। घर को स्वच्छ करना भी कितने सुख की बात है। रुई को स्वच्छ करना, लोहे को स्वच्छ करना या मिट्टी को स्वच्छ करना यह भी एक बहुत बढ़िया काम है। कर्म माने स्वच्छता का सम्पादन और अपने अन्तःकरण को स्वच्छ करना है। जिस समय अन्तःकरण स्वच्छ होगा। हृदय में परमानन्द का आविर्भाव होगा। अन्तःकरण की मलिनता ही आनन्द के आविर्भाव में बाधक है। वासना होती है कि हमको यह चाहिए- यह चाहिए। वह वासना आच्छादित कर देती है, जैसे वस्त्र से कोई चीज ढँक जाती है, वैसे ही अन्तःकरण में वासनाओं का उदय होने से अन्तःकरणाविछिन्न जो चैतन्य यह आवृत हो जाता है- ढँक जाता है। इसलिए कर्म में ज्ञान भी रहे, कर्म में आनन्द भी रहे और कर्म ठीक ढंग से पूरा हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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