गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 4
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोह: क्षमा सत्यं दम: शम: । जीवन में सुख-दुःख आते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति संसार में नहीं होता जिसके जीवन में सुख-दुःख दोनों न आये हों। ये भगवान के बनाये हुए हैं। जिसके जीवन में केवल सुख-ही-सुख आया है या जिसके जीवन में केवल दुःख-ही-दुःख आया है? नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण। जैसे रथ का पहिया नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे घूमता रहता है, वैसे सुख-दुःख का एक चक्र है, जो सबके जीवन में घूमता रहता है। एक हल्की-फुलकी बात आपको सुनाता हूँ। संन्यासी होने के बाद दस वर्ष के अन्तर से मैं काशी गया। जिनसे मैंने श्रीमद्भागवत का अध्ययन किया था उनके घर में बिना बुलाये, बिना किसी सूचना के पहुँच गया। हमारे गुरुजी की पत्नी थीं। आकर बैठ गयीं और खूब रोयीं। इन 8-10 वर्षों में उनके पुत्र की मृत्यु हुई थी। फिर उनके पौत्री का विवाह बहुत अच्छे घर में हो गया था। उसका वर्णन करने लगीं तो खूब हँसी। इस तरह से आठ वर्ष का इतिहास सुनाते-सुनाते दस बार रोयीं दस बार हँसी। हम लोग अपनी ओर भी देखें! हमारे मन की दशा कैसी होती है। उनके एक पुत्र को ऊँचा पद मिल गया था। हमारे गुरुजी सौ वर्ष के हो गये थे। उनकी आँखों से दिखता नहीं था। उन्हें श्रीमद्भागवत आदि से अन्त तक टीका-टिप्पणी सहित, व्याकरण सहित कण्ठस्थ था। एक रुपया रोज उन्हें मन्दिर में मिलता था। और उसी से उनकी उदर-पूर्ति होती थी। कहीं वेतन नहीं लेते थे। उस मन्दिर में जाकर थोड़ी देर भागवत सुनाते थे और उन्हें एक रुपया रोज मिलता था। अब से 55 वर्ष पहले की बात है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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