गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-1 : अध्याय 1-4
प्रवचन : 11
सब परमेश्वर के स्वरूप हैं और परमेश्वर अपना ही स्वरूप है। परमेश्वर से कभी वियोग नहीं होता। जिससे कभी वियोग होता है वह अपना ही स्वरूप नहीं। जिससे कभी वियोग नहीं होता वह अपना ही स्वरूप है। आप सब अपने ही स्वरूप हैं। वक्ता अपनी ओर से कुछ नहीं बोलता। श्रोता के हृदय में जो सुनने का संकल्प होता है, वही वक्ता के निःसंकल्प हृदय में प्रतिबिम्बित होता है। उसी से वाणी निकलती है। एक ने पूछा कि ईश्वर को टेलीफोन करने का नम्बर क्या है? उत्तर मिला कि तुम अपने हृदय को ख़ाली कर लो और ख़ाली हृदय में ईश्वर से बातचीत करो। वही हृदय ईश्वर के साथ जुड़ता है। मेरा हृदय आप लोगों के हृदय से जुड़ता है। मैं प्रवचन करने के लिए कई स्थानों पर जाता हूँ। जैसे श्रोता होते हैं, वैसी ही बात निकलती है। मालूम पड़ता है कि मैं जो कुछ बोलता हूँ, वह मेरा बोला हुआ नहीं, आपका ही बोला हुआ है। मैं भक्तों में जाता हूँ तो भक्ति की बात आती है। वेदान्तियों में जाता हूँ तो वेदान्त की बात आती है और गाँवों में जहाँ लुगायाँ-पतायाँ अधिक होती हैं- जाता हूँ तो दूसरे ही ढंग की बात आती है। ये सब हमारी बात नहीं आपकी ही है। आप स्वयं बोलें और टेपरिकार्ड को धन्यवाद दें, उसके प्रति आभार प्रकट करें तो कैसा लगेगा? उसमें जो ध्वनि भरी हुई है वह आपकी ही है। मैं सबका नाम तो नहीं ले सकता किन्तु श्रीमती सरला और वसन्त कुमार जी, देवधरजी, रमणलाल विन्नानी, सीतारामजी सेकसरिया, भागीरथ जी कानोडिया, ईश्वरी प्रसाद गोयन का और जो लोग पीछे बैठे हैं वे सब; इतना समय निकालकर इतने प्रेम से यहाँ एकत्रित होते हैं यह बहुत आनन्ददायक है। मुझे बम्बई में एक सेठ ने कहा था कि ‘महाराज हम आपके पास चौबीस घण्टे मोटर रख सकते हैं और आप कहें तो दस हज़ार रूपये भी भेज सकते हैं, लेकिन हमसे घण्टे भर का समय न माँगना। धण्टे भर में तो हम उलट-पुलट कर देते हैं। व्यापार के क्षेत्र में हमारा समय बहुत क़ीमती है। वही क़ीमती समय आप लोगों ने सत्संग में दिया है। इससे आपकी रुचि और प्रीति प्रकट होती है। ईश्वर करे यह बनी रहे और दिनों दिन बढ़ती रहे। हमारा जो अध्यात्मतत्त्व है वह ब्रह्म, ईश्वर, माया, प्रकृति और पंचभूत सबमें ओत-प्रोत है। मैटर एक है और उसमें अलग-अलग शक्लें बनी है। सब रूप कर्म से बनते हैं। जैसे परमातम सोना है, उसी में कंगन, कुण्डल और हार आदि बने हैं। सबकी डिज़ाइन अलग-अलग है पर है वह सब-का-सब परमात्मा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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