गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 5
महात्मा की विशेषता क्या है? जो राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति के आश्रित हैं वे तो भगवान का भजन नहीं कर सकते परन्तु जो महात्मा हैं वे देवी प्रकृति का आश्रय लेते हैं। असल में भगवान का आश्रय लेते हैं, उनमें दैवी प्रकृति प्रतिष्ठित होती है और जो दैवी प्रकृति का आश्रय लेते हैं वे भगवान का भजन करते हैं। बिना भगवान के आश्रय के दैवी सम्पदा, दैवी स्वभाव नहीं हो सकता और बिना दैवी स्वभाव के भगवान का भजन नहीं हो सकता। यह दोनों एक साथ हैं। जैसे भागवत में आता है कि मैंने अपने हृदय से भगवान का आश्रय लिया। ब्रह्माजी बोलते हैं - मैंने अपने उत्कण्ठायुक्त हृदय से भगवान को पकड़ रखा है। अपने हृदय में धारण कर रखा है। मेरी वाणी कभी झूठी नहीं होती। मेरा मन व्यर्थ चिन्तन नहीं करता। हमारा मन झूठमूठ की चीजों में नहीं जाता है। मेरी इन्द्रियाँ कभी कुमार्ग में गिरती नहीं। इसका क्या कारण है? उत्कण्ठायुक्त हृदय में एक ही अभिलाषा है। लाख-लाख रूप में वह भगवान की ओर आगे बढ़ता है। यदि संसार का कोई काम है, कर्त्तव्य है तो उसको पूरा करो परन्तु मन को व्यर्थ इधर-उधर भटकने मत दो। उसको भगवान में लगा दो। भागवत में यहाँ तक वर्णन किया कि जिसके हृदय में भक्ति है उसी में सारे सद्गुण आकर निवास करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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