गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 9
अम्ब त्वाम् अनुसंदधामि भगवद्गीते भवद्वेषिणीम्। भगवान ने अर्जुन से कहा कि मैंने प्रसन्न होकर इस परमरूप का दर्शन तुम्हें कराया है। और कैसे कराया उसकी युक्ति भी बता दी। ‘आत्मयोगात्’ अपने आपको विश्वरूप के साथ जोड़कर आत्मा का योग कर दिया कि मैं विश्वरूप हूँ। विश्वरूप हो गये। जैसे आप अपने को अग्रवाल से जोड़ लें तो अग्रवाल और पूरे राजस्थान से जोड़ लें तो पूरे राजस्थानी और भारते से जोड़ लें तो भारतीय। एक ब्राह्मण अपने ब्रह्मणत्व का अभिमान करे तो ब्राह्मण और हिन्दुत्व का अभिमान करे तो हिन्दू। पहले इस विषय पर बहुत चर्चा हो चुकी है विद्वानों की। इन्दौर के महाराज ने एक विदेशी स्त्री से विवाह किया और शंकराचार्य ने उसकी शुद्धि करवायी थी। उसका नाम शर्मिष्ठा रखा गया था। अभी 2-4 बरस पहले तक थीं वे। पण्डितों ने उसका विरोध किया। तब शंकराचार्य ने यह प्रश्न उठाया कि हिन्दू कौन है? ‘किं नाम हिन्दुत्वम्। हिन्दू किसको कहते हैं। चोटी-वाला? शंकराचार्य ने बता दिया कि हमारे तो चोटी नहीं है-हमको हिन्दू मानते हो कि नहीं! जनेऊवाला? हमारे जनेऊ भी नहीं है। अच्छा तो पुनर्जन्म माने सो? हमारे चार्वाक हैं ये लोकयतवादी है उनको हिन्दू मानोगे कि नहीं? ईश्वर को माने सो? बौद्ध को हिन्दू मानोगे कि नहीं? एक बात नहीं कही कि जिसकी भारत में जन्म-भूमि हो वह हिन्दू? बोले कि जो विदेशी यहाँ आकर जन्म लेते हैं, वे हिन्दू है कि नहीं? अब मैं आपको कहाँ तक सुनाऊँ-इसकी कई कक्षाएँ हैं। सावरकर ने भी जो परिभाषा की वह यही थी कि हिन्दू वह है भारत जिसकी जन्मभूमि और पितृभूमि हो। विदेशी हों, जो दो-तीन-चार पीढ़ी से यहीं हों-उनकी जन्मभूमि है। मुसलमान भी यहाँ दस-दस पीढ़ी से रहते हैं-उनको हिन्दू मानोगे कि नहीं? विद्वानों के विचार से यह बात निकलती है कि जो अपने को हिन्दू माने सो हिन्दू। भगवान जब अपने को द्विभुज मानते हैं तब द्विभुज, अपने को चतुर्भुज मानते हैं तो चतुर्भुज, अपने को विश्वरूप मानते हैं तो विश्वरूप। हमारे मन में संन्यासीपने की संविद् कभी नहीं हुई। संन्यासी होने के पहले ही ब्रह्मसंविद् का जागरण हो गया था। उसमें-से कहाँ संन्यासी, कहाँ गृहस्थ, कहाँ भारतीय, कहाँ अभारतीय-इसलिए मानवता का पक्ष अपने चित्त में प्रारम्भ से ही अधिक रहा, किसी घेरे में बँधे नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज