गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 8
भगवान श्रीकृष्ण ने भजन करने वालों के बारे में दो बात कही। एक तो भजतां प्रीतिपूर्वकं ददामि बुद्धियोगम्। जो प्रीतिपूर्वक भजन करते हैं, उन्हें मैं बुद्धियोग देता हूँ और दूसरी बात कही तेषामेवानुकम्पार्थम् अहमज्ञानजं तमः। उनके ऊपर में कृपा करता हूँ। बुद्धियोग दिया उससे जीव स्वयं परमेश्वर के पास पहुँच गया। उसी के हाथ में सा धन दे दिया और तीसरा बताया कि मैं ऐसी कृपा करता हूँ कि उनके हृदय में स्वयं बैठ जाता हूँ और उनके अज्ञानान्धकार का नाश करता हूँ। जीव के बुद्धियोग से भी परमात्मा की प्राप्ति होती है और भगवान की कृपा से भी परमात्मा की प्राप्ति होती है। यह दो विभाग हो गये। जो पोरुषवान् हैं, प्रयत्नशील हैं, उनके हाथ में भगवान ने साधन दे दिया - तुम आ जाओ - येन मामुपयान्ति। और एक स्वयं दीपक लेकर मशाल लेकर रास्ता दिखाते हैं। रास्ता दिखाने वाले भी वही और मिलने वाले भी वही। ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्परा: । एक को नदी के पार जाना था। पार जाकर किसी से मिलना था, उससे पहचान नहीं थी। नदी के तट पर जाकर खड़ा हुआ। व्याकुल हुआ कि नदी के पास कैसे जायँ? जिससे मिलना था उस मित्र को पता चल गया कि वह हमसे मिलने के लिए आया है और नाव न मिलने पर व्याकुल हो रहा है। स्वयं नाव खोली, लंगर उठाया और डाँड़ देता हुआ पहुँच गया - उसको लेने के लिए। अब वह तो इतना निर्बल था कि नाव पर चढ़ भी नहीं सकता था। वह नाव से उतरा, उसको दोनों हाथ से उठाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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