गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-11 : अध्याय 14
प्रवचन : 8
प्रश्न: भगवान को अपनी बात पर या अपने कथ्य के महत्त्व पर श्रद्धा उत्पन्न करने के लिए ऋषियों, वेदों के मन्त्रां और ब्रह्मसूत्र के पदों का हवाला देने की आवश्यकता क्यों पड़ती थी? उत्तर: भगवान कहते हैं कि जब मैं भी वेदों पर और ऋषियों पर श्रद्धा करता हॅूं, तो तुम भी करो। अपनी श्रद्धा का हवाला देकर, वे दूसरों के चित्त में वेदों और ऋषियों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना चाहते हैं, क्योंकि भगवान हमेशा प्रकट नहीं रहते हैं। कभी-कभी अवतार लेते हैं। और वेद और ऋषि तो हमेशा रहते हैं। यदि लोगों की श्रद्धा वेदों पर और ऋषियों पर नहीं रहेगी-सब भगवान को ही ढूँढने लगेंगे कि वे बोलें तब श्रद्धा करेंगे तब तो श्रद्धा का हृास अथवा विनाश ही हो जायेगा। इसलिए भगवान केवल अपने वचन पर ही नहीं, वेदों और ऋषियों पर भी श्रद्धा उत्पन्न करवाते हैं। शिव पुराण में एक कथा है-जब भीष्म पितामह अपने पिता शान्तनु के लिए पिण्डदान कर रहे थे, तो वहाँ जल में-से हाथ निकल आया। हाथ किसका है? पिताजी का है। भीष्म ने पिण्डदान रोक दिया। हाथ में पिण्ड रख लिया और ब्राह्मण से पूछा-‘शास्त्र में हाथ में पिण्ड देने का विधान है या कुशावली वेदी पर?’ ब्राह्मण ने बताया कि कुशावली वेदी पर ही पिण्डदान का विधान है। तो भीष्म पितामह ने कहा कि मैं हाथ पर पिण्डदान नहीं करूँगा। मैं तो शास्त्र में जैसा लिखा है वैसा ही पिण्डदान करूँगा, क्योंकि बाद में जब लोगों का पिण्डदान करना होगा और कहेंगे कि हमारे पिता का हाथ प्रकट हो तब पिण्डदान करेंगे तो पिण्डदान की पद्धति का लोप हो जायगा। इसलिए शास्त्रोक्त पद्धति से ही पिण्डदान करना चाहिए। हमारे शास्त्र पर, परम्परापर, ऋषियों पर श्रद्धा बनी रहे, इसलिए भगवान भी कहते हैं कि हम वेदों, शास्त्रों और ऋषियों के अनुसार ही बोलते हैं। यह बात ईशावास्य उपनिषद् में भी है। इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद् विचचक्षिरे ।[1] केपोनिषद् में भी है। इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे ।[2] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज