गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-1 : अध्याय 1-4
प्रवचन : 9
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- आत्मानं सृजाम्यहम् मैं अपनी सृष्टि करता हूँ। यह सृष्टि किसी दूसरे को नहीं आत्मा की है। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान श्रीकृष्ण का शरीर प्रकृत नहीं, पन्चभूत का बना हुआ नहीं। वे प्रकृति से करते हैं वश में और आत्म-संकल्प से करते हैं सृष्टि। माया शब्द का अर्थ आचार्य रामानुज ने ज्ञान किया- माया तु वयुनम् ज्ञानम्। माया शब्द का अर्थ संकल्प भी है। स्वां प्रकृतिम् अधिष्ठाय में जो प्रकृति है वह सांख्य में वर्णित जड़ प्रकृति का वर्णन है वह ईश्वराधीन है। मया भूतं सचराचरम्- भगवान ने अपनी प्रकृति को वश में करके, स्वसंकल्प से अपने आपको ही व्यक्ति के रूप में प्रकट किया। इसलिए श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व सच्चिदानन्दघन है। सच्चिदानन्दघन का अर्थ है निर्विकार। श्रीकृष्ण निर्विकार हैं। भागवत में इसका उल्लेख अनेक स्थानों पर है! तमयं मन्यते लोको ह्यसंगमपि सगिंनम्। मूर्ख लोग श्रीकृष्ण को विकारी मानते हैं किन्तु विद्वान निर्विकार मानते हैं- अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धय:। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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