गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-1 : अध्याय 1-4
प्रवचन : 2
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ पर सारथि-रूप से एक हाथ में घोड़ों की बागडोर और चाबुक पकड़ ली। इसका अर्थ है कि उनके एक हाथ में पूरा शासन है और उनका दूसरा हाथ ज्ञान-मुद्रा में है। तात्पर्य यह कि ज्ञान और शासन ये दोनों तो हैं भगवान के हाथों में और स्वयं भगवान हैं प्रपन्न-पारिजात, उदारशिरोमणि। किसी प्रकार का कार्पण्य उनमें नहीं। यह ईश्वर का लक्षण है कि वह परम उदार है, ज्ञान दे रहा है और शासन की बागडोर उसके हाथ में है। उसने इस गीता-रूपी अमृत का दोहन किया है। जरा ध्यान कीजिये पार्थसारथि, प्रपन्न-पारिजात, तोत्रवेत्रैकपाणि भगवान का, जिनके एक हाथ में तोत्र-घोडों की बागडोर और वेत्र-चाबुक है तथा दूसरे हाथ में ज्ञान की मुद्रा है। अब तीन बात गीता में आनी चाहिए। शरणागतवत्सल भगवान हैं प्रपन्न-पारिजात। अर्जुन प्रपन्न हैं और भगवान पारिजात अर्थात कल्पवृक्ष हैं- अर्जुन रूप प्रपन्न के लिए। उनसे जो चाहो सो मिलेगा। मन का नियन्त्रण इन्द्रियों का शासन उनके हाथ में है और वे ज्ञान-दाता है। इस प्रकार गीता-अमृत में से तीनों बातें आयीं। भारतीय संस्कृति या वैदिक संस्कृति में ज्ञान दो तरह का माना गया है-
ये वेद, उपनिषद आदि जो ग्रन्थ हैं- इनमें मन्त्र हैं, श्लोक हैं, परन्तु ज्ञान का जो स्वरूप ये मानते हैं वह स्वयं अनुभव है, ब्रह्म है, आत्मा है, परमात्मा है। इस संसार में इस ज्ञानस्वरूप को ध्यान में रखकर कोई धर्म-ग्रन्थ नहीं बना। इसका अर्थ यह है कि पुरुष अपने अनुभव से ज्ञान को इकट्ठा करके फिर उसका वर्णन नहीं किया। संसार का अनुभव होने से पहले जो ज्ञान-स्वरूप आत्मा था वह ज्यों-का-त्यों ज्ञान ही था। अनुभव-अखण्ड ज्ञान ही था जगत के मूल में। ज्ञान सब-का-सब दिया हुआ है कि देने के पहले भी कुछ था? बड़ी अद्भुत बात है कि ज्ञान का स्रष्टा ईश्वर भी नहीं होता। यदि हम माने कि ईश्वर ने ज्ञान बनाया है, तो प्रश्न उठता है कि ईश्वर ने ज्ञान कैसे बनाया? ज्ञान बनाने से पहले ईश्वर ज्ञानी था कि अज्ञानी? यदि ज्ञान बनाने से पहले ईश्वर ज्ञानी था तो ज्ञान था ही। यदि ज्ञान बनाने से पहले ईश्वर अज्ञानी था तो वह ज्ञान कैसे बनायेगा? इसलिए एक ज्ञान ऐसा है, जो ईश्वर का बनाया हुआ नहीं। उसी ज्ञान से ईश्वर का पता चलता है। इसको हम लोग अपनी भाषा में अपौरुषेय ज्ञान बोलते हैं। वेद क्या है? यह पुरुष बनाया हुआ ज्ञान नहीं। जिस ज्ञान से पुरुष बना है- वह ज्ञान है। इस ज्ञान में जीव और ईश्वर दोनों प्रकट होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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