गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-11 : अध्याय 14
प्रवचन : 4
प्रश्न: ऐसे कुछ भक्तों के उदाहरण देकर भक्ति के इस विशिष्ट रूप को स्पष्ट करें। उत्तर: हम लोग परीक्षा देने के लिए बैठते थे तो ऐसे ही प्रश्नपत्र आया करते थे। यहाँ ज्ञान प्राप्त करना है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमारे अन्दर क्या-क्या योग्यता होनी चाहिए, यह बात इस प्रसंग में कहीं जा रही है। ईश्वर-सम्बन्धी ज्ञान की तो बात छोड़ दें, केवल रासायनिक ज्ञान भी प्राप्त करना हो-माने विज्ञान की रीति से किसी वस्तु का विश्लेषण करना हो तो उसके लिए भी शान्ति चाहिए, उसके लिए भी इन्द्रियों की चंचलता छोड़कर उसको समझना चाहिए, नहीं तो समझ में आयेगा नहीं। थोड़ी देर के दूसरे काम से मन हटाकर उसमें लगाना चाहिए। उसको समझते, सीखते समय कोई तकलीफ आ जाय तो उसको सह लेना चाहिए। विश्वास श्रद्धा रखना चाहिए कि इस काम में हमको सफलता मिलेगी। आज नहीं समझ में आता है तो कल आ जायेगा और अपने चित्त में जितने भी संशय हों उनको मिटाते जाना चाहिए। सबसे बड़ी बात है कि यदि आप कोई भी ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो उसमें रुचि होनी चाहिए, प्रीति होनी चाहिए। साधुओं ने हम लोगों को बताया था कि किसी गाँव में भिक्षा लेने के लिए जायें तो कई घर ऐसे मिलेंगे जहाँ भिक्षा नहीं मिलेगी, कई घर ऐसे होंगे जहाँ मिलेगी। कहीं डाँट-फटकार मिलेगी। कहीं कुत्ते दौड़ेंगे। कहीं माई गाली देने लगेगी। तो इसकी परवाह नहीं करना। गाँव में भिक्षा के लिए जाते रहना। जो पहले दिन नहीं देंगे, वे दूसरे दिन देंगे। हप्तेभर बाद देंगे। देंगे जरूर। किसी भी वस्तु का यदि हम ज्ञान प्राप्त करना चाहें-और एक दिन में समझ में न आवे तो दूसरे दिन, तीसरे दिन, चौथे दिन में समझ में आयेगा। ‘हरि से लागा रहु रे भाई-तेरी बनत-बनत बन जाई।’ ऐसा कौन-सा ज्ञान है जो किसी को प्राप्त हो जाय और हम उसको प्राप्त न कर सकें। ईश्वर की शक्ति तुम्हारे अन्दर है। आप देखो-मोटर चलाते हैं, जिनको मशीनरी का ज्ञान होता है कि स्टार्ट करने से कहाँ-कहाँ होकर बिजली घूमती है, कैसे मशीनों को चलाती है, रास्ते में कहीं बिगड़ जाय तो ठीक कर लेते हैं और जिनको मशीन का ज्ञान नहीं है, उनको यदि पेट्रोल कहीं अटक जाय तो खड़ा होकर किसी जानकार की इन्तजार करनी पड़ती है। किसी भी वस्तु का समग्र ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, ऐसा भगवान का कहना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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