गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 5
कौन स्तव्य बड़ा है, कौन स्तव्य छोटा है, यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं। एक परमात्मा सब में पूर्ण है। बहुधा विश्वतोमुखम्। जल दो पीपल में, तुसली में, बेल में और कहो यह परमात्मा की पूजा है। पार्थिव लिंग बनाओ और उस पर चन्दन-अक्षत चढ़ाओ और कहो यह भगवान की पूजा है। पत्थर की मूर्ति है - लिंग है सब। यह बात दुनिया के किसी मजहब में नहीं है, इसलिए इसको आप वहाँ से मत लीजिये। वहाँ तो ईश्वर निराकार है। वैज्ञानिक लोगों को अभी ईश्वर का पता ही नहीं है। साइन्स में पूजा मत निकालो। दूसरे मजहब से पूजा मत निकालो, अपना जो सिद्धान्त है कि सिवाय भगवान के और कोई चीज नहीं है - वहाँ से पूजा निकालो - अब बताते हैं मैं क्या-क्या हूँ- इस श्लोक में आठ बार अंह है - यह भगवान के अंह को देखो - मैं तुम्हारे सामने हूँ देखो मुझे, देख लो मुझे। वैदिक रीति से कोई संकल्पपूर्वक यज्ञ करते हैं तो उस यज्ञ के रूप में मैं हूँ। पहचान नहीं है भगवान से, यही दोष है। पहचान हो तो देखो सब भगवान। पिता, माता में भी मैं ही हूँ। सबका माता सबका पिता। अब देखो जो माता है वह पिता नहीं है जो पिता है सो माता नहीं है। दोनों अलग-अलग होते हैं और भगवान वह है जो माता का स्नेह और पिता की शिक्षा, दोनों लेकर प्रकट हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लोक 9.16
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