गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 5
विद्वान् कहीं सृष्टि में जीवित रहेगा तो फिर से धर्म और संस्कृति का झरना बहा सकता है। यज्ञ में दान होता है सद्गुणों का आदान करना। अपने जीवन में नियम निष्ठा को लाना। कष्ट सहिष्णुता को लाना। परन्तु उपासना भगवान की करना। ‘यजन्तो मामुपासते’। यह सब कुछ करें परन्तु करें भगवान के लिए। तब इससे न तो अपने व्यक्ति में अभिमान का उदय होगा और न तो दूसरे को हम एहसानमन्द बनायेगें। हमने तुमको दिया है नहीं, भगवान को दिया है। हमने दिया है, नहीं-नहीं भगवान ने दिया है। देने वाले का हाथ उठाने वाला भगवान है और लेने वाले का हाथ रोपने वाला भगवान है। वही देता है और वही लेता है। बिचौलिए की जरूरत भगवान को नहीं है। स्वयं देते हैं, स्वयं लेते हैं। यह बात भागवत में भरतोपाख्यान में बिलकुल स्पष्ट है। भरत का देना - भगवान दे रहे हैं। इन्द्र का लेना - बोले भगवान ले रहे हैं। देवता का अन्तर्यामी भी भगवान है और दाता का अन्तर्यामी भी भगवान है। अन्तर्यामी ही अन्तर्यामी को देता और लेता है। इसमें अभिमान का कोई स्थान नहीं है। ‘मां उपासने’ उपासना कई तरह की होती है। ‘एकत्वेन, पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम्’। अपने मैंको परमात्मा से मिला दो - एकत्व हो गया। जैसा अपने से प्रेम है, अपनी सेवा से, वैसे ही सबसे प्रेम, सबकी सेवा। मैं सेवक सचराचर रूप-राशि भगवंत’ - यह पृथक्त्वेन। सूर्य भी वही है, चन्द्रमा भी वही है, भगवान अष्टमूर्ति है, अष्टमूर्ति में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा और ऋत्विक ये आठ मूर्तियाँ भगवान की हैं - आठों की सेवा करो। सूर्य-चन्द्रमा को आप अर्घ देते हैं। अग्नि की भी सेवा करते हैं, वायु की भी सेवा करते हैं। इसका यह भी एक अर्थ है कि पृथवी, जल को गन्दा मत करो उसमें अपवित्र वस्तु मत डालो। वातावरण को दूषित मत करो। आकाश में गन्दे शब्द मत भरो। यह भी भगवान की सेवा है। ‘एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा’ अनेक रूप में - माँ के रूप में, पिता के रूप में सेवा करो। सब रूप में यही हैं। बहुधा - सब रूप में वही है। बल्लभाचार्य ने तो पुत्र के रूप में भगवान की सेवा की। यह आश्चर्य है। रामकृष्ण परमहंस ने माँ के रूप में पत्नी की उपासना की। अपनी पत्नी है न - माँ-माँ कर रहे थे पूजा की सामग्री रखकर। और आकर उनकी श्रीमतीजी बैठ गयीं सिंहासन पर तब जगज्जननी जगदम्बा मानकर पूजा की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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