गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 7
अब दो बात सुनाता हूँ - गोपियों के सारे बन्धन टूटकर गिर गये। कर्म का बन्धन, वासना का बन्धन, अज्ञान का बन्धन सब-के-सब टूटकर गिर गये। कैसे गिरे? जब श्रीकृष्ण के बिरह का अनुभव करती हैं, गोपियों में इतना ताप होता है, इतना ताप होता है कि उस बिरह नाद को देखकर त्रिलोकी का त्रैकालिक ताप - तीनों लोकों में कभी बड़ा-से-बड़ा दुःख हुआ हो, वह दुःख थरथर काँपने लगा - अरे कृष्ण के बिरह में इतना दुःख। सारे पाप भस्म हो गये। अब हम उनको और क्या दुःख देंगे? ये तो कृष्ण के बिरह में ही इतनी दुःखी है और उनका कर्म जल गया। उनकी वासना जल गयी। उनका अभिमान जल गया। उनका अज्ञान जल गया। कृष्ण के साथ आया आनन्द, ध्यान में मिला आलिंगन - श्रीकृष्ण ने अपने हृदय से लगा लिया, इतना आनन्द हुआ गोपियों को। इतना आनन्द हुआ कि त्रिलोक के जो त्रैकालिक पुण्य हैं, तीनों लोक में जितने जीव हुए हैं और उन्होंने जितना पुण्य कभी किया है, कर रहे हैं, करेंगे - सबने देखा - बोले सब मिला सकें जो क्या जीव को इतना आनन्द दे सकेंगे? बोले नहीं - हम तो इतना आनन्द नहीं दे सकते। तो सबका अभिमान टूट गया। सारे पुण्य क्षीण होकर गिर गये। सारा मंगल, सारा पाप, सारा पुण्य क्षीण हो गया और भगवान मिल गये। विरह में अभिमान नहीं रहता है, विरह में तो अभिमान हो ही नहीं सकता। संयोग में भी अभिमान नहीं हो सकता। यह है प्रीति की रीत निराली। भगवान की अनुकम्पा, भगवान की कृपा, भगवान की दया! अब क्या करते हैं? बल्ब जलाते हैं, मसाल जलाते हैं, दीपक जलाते हैं। भगवान ने कहा किसलिए? तो तुमको देखने के लिए। अन्धेरे में तुम दिखते नहीं हो, मैं रोशनी जलाकर तुम्हें देखूँगा और बोले तुम बैठे रहो, पलंग पर लेटे रहो - मैं अपने आप ही रोशनी कर देता हूँ। मैं बटन दबा दूँगा, मैं मशाल जलाऊँगा, मैं दीपक जलाऊँगा। अहम् अज्ञानजं तमः नाशायाम्यात्मभावस्थः। यह अज्ञानजनित जो तमः है, अन्धकार है, इस अन्धकार को मिटाने के लिए तुमको कुछ नहीं करना पड़ेगा। न कर्म, न उपासना, न योग, न विवेक, न वैराग्य, न समाधि - तुमको कुछ नहीं करना पड़ेगा। मधुसूदन सरस्वती ने गीता के श्लोक की व्याख्या में कहा है कि बिना कर्म के, बिना उपवास के, बिना योग के जब कृपा आयी, अनुकम्पा आयी तब यह देखना धर्म है कि कोई विवेकी है कि नहीं - वैराग्यवान् है कि नहीं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज