गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-7 : अध्याय 10
प्रवचन : 5
यह वैभव है। शीशे का वैभव दिखाता है कि आपकी नाक कैसी है, आपकी आँख कैसी है? लेकिन इसका योग देखो, शीशे में योग है। न तो तुम उसके भीतर घुसे और न तो पैदा हुए और न उसमें तुम्हारी लम्बाई-चैड़ाई है। न तुम्हारा उसमें दाहिना-बाँया है, न मुटापा है - न आगे-पीछे है। क्या विभूति है शीशे की। यह परमात्मा की विभूति है। यह दुनिया की लम्बाई-चैड़ाई, इसका मोटापा, इसका आगे-पीछे, इसका छोटापन, इसका बड़ापन कुछ नहीं। सुखं दुःखं भवो भावः। देखो जन्म-मरण दीखता है - क्या विभूति है। बेटे का जन्म हुआ - केवल समाचार मिला। इसी से फूल गये। झूठा समाचार मिला, किसी प्यारे की मृत्यु हो गयी। दुःखित हो गये। है कुछ नहीं - आपके पैदा होने से पन्चभूत का - धरती का, पानी का, कुछ वजन बढ़ गया? आपके मरने से पन्चभूत का वजन कुछ घट गया? सो रहा ज्यों-का-त्यों! गणेशजी बने और मूर्ति बिगड़ गयी। मूर्ति बनी और बिगड़ गयी। इतना ही है, मिट्टी का योग है और मूर्ति उसकी विभूति है। जन्मना भी भगवान मरना भी भगवान। दूसरे को दुःख पहुँचाने से डरें। दूसरे ने कड़वा बोलने में डरें। और निर्भय होकर सदाचार का पालन करने में भय काहे का? यह तत्त्वज्ञान तीन ही चीज जीवन में देता है। एक तो अभयं प्रतिष्ठां विन्दते।[1] जिसको तत्त्वज्ञान हो जाता है, वह सृष्टि में निर्भय हो जाता है। कोई आओ, कोई जाओ। भगवान की विभूति मजा लेने के लिए है। हमारे हृदय में भय प्रकट होता है कि हम दुष्कर्म न करें। हमारे जीवन में अभय प्रकट होता है - हम सत्कर्म करें। ये दोनों वृत्तियाँ भय की, अभय की सब भगवान की दी हुई हैं। जरा देने वाले को एक बार झाँक लें। आपके मन में कोई भाव आवे तो धियो यो नः प्रचोदयात् को जरा देख लो। हमारी बुद्धि का प्रेरक जो है उसको देख लें। एक बार उसकी ओर निहार लो। यह भेजने वाला कौन है? अपना प्यारा है। चाँटा किसने लगाया? प्यारे ने। ये चिकोटी किसने काटी? प्यारे ने। बस, इसी में तो मजा है। दूसरी बात वेदान्त-जीवन में देखना है - एक विज्ञान से सबका विज्ञान। ऐसी कोई दूसरी विद्या नहीं है, किसी मजहब में नहीं। हम चुनौती देते हैं - दुनिया का कोई मजहब बता दे एक विज्ञान से सर्व-विज्ञान की प्रक्रिया क्या है? यह उपनिषदों के सिवाय और कहीं मिलती है? एक को जान लिया और सबको जान लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तै. उप. 2.7.1
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