गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 3
तो आओ परमात्मा को देखो। परमात्मा की स्मृति नहीं होती, उसका अनुभव होता है। स्मृति और अनुभव दोनों में अन्तर है? अनुभव वर्तमान में है और स्मृति भूत की है। गृहीत स्मृति। जिसको पहले ग्रहण किया है, उसको ग्रहण करना, जाने हुए को जानना, इसका नाम स्मृति है और अनजाने को जान लेना इसका नाम ज्ञान है। गीता कहती है -
यही है परमात्मा, इसी देह में है। संस्कृत भाषा में देह माने राशि, ढेर। लोग गाते हैं - मेरा हीरा हेराय गयो कचरे में। इसी कचरे में हीरा है, हड्डी है, मांस है, चाम है। इसी में स्त्री है, पुत्र है। इसी में धन-दौलत है, सब कुछ है। सारी दुनिया का कचरा इसी कलेजे में रहता है और इसी में वह हीरा भी है। वह हीरा क्या है? हरि है, हर है। वह शक्तों का ‘ह्री’, वह मुसलमानों का रहीम यही है। मजहब तो महज ऊपर चढ़ने की एक सीढ़ी मात्र है। मजहब का महत्त्व कुछ परमात्मा में नहीं है। आपके पास मोटर है पर वह दरवाजे तक ही पहुँचायेगी। महल के भीतर, सोने के कमरे तक उसकी गति नहीं है। इसी प्रकार सब मजहब मोटर के समान हैं। चढ़ो, चलो, छोड़ दो। बिना छोड़े अपने महल में नहीं पहुँच सकते - छोड़ना ही पड़ेगा। इसी देह में परमात्मा है - वह उपद्रष्टा है, कर्ता है, भोक्ता है, महेश्वर है, परमात्मा है। अब चाहे तो उसका निषेध करके देखो या उसका साक्षात्कार करो। यह-यह-यह करके आप अपने भाव को दृढ़ बना लो। दोनों में राग-द्वेष नहीं है। आपके दिल में जो जलन है, स्पर्धा, असूया, तिरस्कार किसके लिए? आप होड़ किससे लगाते हैं? सबमें परमेश्वर है। आप किसके अन्दर दोष देखते हैं। वह तो परमात्मा है। किसका तिरस्कार करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लोक 13.22
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