गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 1
चौदहवाँ अध्याय यह बताता है कि सत्त्व, रज, तम ये तीनों गुण बन्धन के हेतु हैं। यह जरूर है कि सत्त्व गुण अच्छाई से बाँधता है, तमोगुण बुराई से बाँधता है और रजोगुण अच्छाई-बुराई दोनों से बाँधता है! सत्त्वं सुखे संजयति। सुखसंगेन बन्धाति ज्ञानसंगेन चानघ। सत्त्वगुण सुखासक्ति और ज्ञानासक्ति में बाँध देता है। दोनों में बन्धन। रजोगुण तृष्णा में बाँधता है। आलस्य प्रमाद में तमोगुण बाँधता है। तीनों के लक्षण, तीनों के फल अलग-अलग बताये और तीनों से अलग होने का उपाय बताया। और तीनों से अलग हुए जो महापुरुष हैं उनका लक्षण बताया। अब आप भगवान के मुख से जब चौदहवें अध्याय का श्रवण करते हैं तब मालूम होता है-कि वहाँ त्वं-पदार्थ-प्रधान निरूपण है-हम गुणातीत कैसे हैं? और पन्द्रहवें अध्याय में तत-पदार्थ-प्रधान निरूपण है कि परमात्मा क्षर और अक्षर दोनों से विलक्षण पुरुषोत्तम कैसे हैं? तत-पदार्थ का निरूपण प्रधान रूप से पन्द्रवें अध्याय में है और त्वं पदार्थ का (त्वं-पदार्थ माने आत्मा मै) निरूपण है चौदहवें अध्याय में। एक बात ध्यान रखिये कि ईश्वर आपके हृदय में ही है। जितना-जितना आप बाहर से भीतर प्रवेश करेंगे, उतना ही-उतना परमात्मा के निकट पहुँचेंगे और परमात्मा का अनुभव होगा। एक बार एक महात्मा से मैं सत्संग कर रहा था-सामने श्लोक आया- न जायते म्रियते वा कदाचित। आत्मा न जन्म है न मरण है। मैं तो उस समय यही समझता था कि कोई आत्मा नाम की वस्तु होगी और उसका जन्म-मरण नहीं होता होगा। महात्मा ने बताया-यह तुम्हारा ही वर्णन है- न जायते न म्रियते वा कदाचित। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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