गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
स्वागत-भाषणः
श्रीरमणलालजी बिन्नाणी परम श्रद्धेय, युग-पुरुष, युग के प्रकाण्ड महान विद्वान स्वामी अखण्डानन्दजी महाराज के चरणों में हम सबका सादर प्रणाम! महानुभावों! यह हमारा परम सौभाग्य है कि महाराजश्री के दिव्य वचन सुनने हमें सुअवसर, सौभाग्य मिल रहा है। हमारे देश के परम संत, महान विभूति, प्रकाण्ड विद्वान, अधिकारी व्याख्याता-(और क्या-क्या कहें) स्वामी अखण्डानन्दजी महाराज सान्निध्य- हमारे परम सौभाग्य का उदय है। प्रतिवर्ष इन दिनों स्वामीजी यहाँ पधारकर हम सबपर बड़ी कृपा करते हैं। स्वामी अखण्डानन्दजी महाराज-अखण्ड आनन्द तो हैं ही लेकिन मैं कहना चाहूँगा-विद्वत्ता की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। कितनी गहरी पैठ आपकी है-हमारे धर्मग्रन्थों में! ऐसे महामानव, महामना, महान सन्त का सान्निध्य पाकर हम अपने को कृतकृत्य मानते हैं। यह प्रातःकालीन कार्यक्रम बिरला-पार्क में हुआ करता था। कुछ ऐसे कारण बन गये कि इस बार यह कार्यक्रम बिरला-पार्क में सम्भव नहीं हो सका और संगीतकला मन्दिर तथा संगीतकला मन्दिर ट्रस्ट के साथ यह प्रोग्राम यहाँ कर लिया। यह भी हमारा बड़ा सौभाग्य है। इस वर्ष का सत्संग-प्रसंग गीता के 14 वें अध्याय में केन्द्रित रहेगा। इस प्रश्नोत्तर-सत्र में यह लाभ है कि इसके श्रोता भी अपने घर में गीता का अध्ययन करते हैं। इस वर्ष प्रश्न काफी आये हैं। यह रुचि सराहनीय है। मैं सबका नाम नहीं लूँगा पर श्री रामकरण जी गुप्ता ने सत्ताइस पेज (full Scae) पर प्रश्न लिखकर भेजे हैं। वे प्रश्न दो दिन पूर्व ही प्राप्त हुए हैं और दिवाली का मौका होने से ज्यादा ध्यान न दे सके। अब ध्यान देकर जितने प्रश्न पूछ सकेंगे, पूछेंगे। पूज्य महाराजजी ने विगत वर्षों में बताया कि गीता हमारी माता है। माता जिस तरह दूध पिलाकर हमें पुष्ट बनाती है, हमें सशक्त बनाती है, जीवनयापन करने के लिए हमारे शरीर को सुदृढ़ करती है, उसी प्रकार गीता माता मानसिक स्तर पर हमें बहुत सुदृढ़ बनाती है और जीवन में विषमता में हम जहाँ खड़े होते हैं, वहाँ हमें रास्ता दिखाती है, प्रकाश दिखाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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