गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 5
बाबा, इतने लोगों को कौन मारे-‘मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्’-मैं तुमसे इसलिए कहता हूँ कि तुम सव्यमाची हो। अर्जुन ने उद्योग पर्व में बड़ा ललकार कर कहा है कि मैं सव्य और अपसव्य दाहिने और बाँये-दोनों हाथों से गाण्डीव धनुष को चलाता हूँ और मैं चाहूँ तो मिनट में दुनिया का संहार कर सकता हूँ। मेरे पास ऐसे-ऐसे बाण हैं-बाण माने यह नहीं कि बच्चे विजया दशमी पर खेलते हैं। बाण तो विश्व को ध्वंस करने की शक्ति रखने वाला होता है। हजारों-लाखों मील दूर जाकर मार सकता है और लौटकर फिर फेंकने वाले के हाथ में आ सकता है। इस प्रकार बाणों का वर्णन शास्त्र में आता है। तो अर्जुन दोनों हाथों से बाण चलाने में समर्थ था। भगवान बोले-इसलिए तुमसे कह रहा हूँ कि ये जो तुम्हारे सामने वीर खड़े हैं, इनको तो काल ने मैंने-पहले से ही मार रखा है। अब तुम इन पर विजय प्राप्त करने में निमित्त मात्र बन जाओ।
नाम लेकर बोलते हैं-ये द्रोणाचार्य। जिनकी आयु सैकड़ों वर्ष है। अब मरने के लिए तैयार हैं। देखो, तुमने देख ही लिया कि ये मेरे शरीर में मर गये। ये भीष्म जो इच्छा-मृत्यु धारण करने वाले हैं, जब चाहें तब मरें। ये जयद्रथ हैं जिनके पिता बड़ी भारी तपस्या कर रहे हैं कि मेरे पुत्र के सिर को जो धरती पर गिरावे उसका सिर भी गिर जाय। और ये कर्ण जिसके पास इन्द्र की दी हुई शक्ति है, जिसको अमोघ कवच प्राप्त है। वह कर्ण, जिसकी प्रतिज्ञा है कि जब तक भीष्म जिन्दा रहेंगे तब तक मैं नहीं लडूँगा। जब भीष्म हार जायेंगे, गिर जायेंगे तब मैं लडूँगा। वह कर्ण है। और भी तुम्हारे पक्ष के, उनके पक्ष के बड़े-बड़े योद्धा भी हैं। मैंने पहले ही इन्हें मार दिया है। ‘मया हतास्त्वं जहि मा व्यथिष्ठाः’। अर्जुन ने कहा कि जब तुमने मार ही दिया है तो वे मारे हुए को क्यों मारना? पिसे हुए को क्या पीसना। मार दिया-अपने आप मर जायेंगे। हमको इसमें क्यों लगाते हो? बोले कि नहीं भाई-पिता, पितामह आदि भले कैसे भी मर जायें परन्तु पुत्र का तो कर्तव्य होता है कि आग में लेजाकर उनको जलावे, अन्त्येष्टि कर्म करे। मार तो दिया है इनको हमने, लेकिन अन्त्येष्टि कर्म करने का विभाग अब तुम्हारे सिर पर आ गया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.34
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज