गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 9
जो लोगों का संचालन करता है और जो सब बना हुआ है। वह भगवान है। गीता के भगवान को, गीता के प्रेरक को आप अपने से दूर मत कीजिये। अब से 5000 वर्ष पहले महाभारत-युद्ध कुरुक्षेत्र में हुआ। और वहाँ एक रथ था, एक अर्जुन था, एक कृष्ण थे। हम उस इतिहास को मना नहीं करते। परन्तु अब जिस युग में आप हैं-आपसे 5000 वर्ष दूर नहीं हैं भगवान। आपसे 1000-2000 मील दूर नहीं है भगवान। वह कुरुक्षेत्र में नहीं हैं, आपके हृदय में हैं। वह द्वापर में नहीं है, इसी कलियुग में हैं और वह दूसरे रथ में नहीं हैं, इसी रथ में हैं। वह अर्जुन दूसरा नहीं है, आप ही है। अपने को पहचानिये। देखिये आपका मार्ग-दर्शक, आपका पथ-प्रदर्शक ‘कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्’-वह जगदगुरु आपके साथ है। जब हम पहले बोलते थे ‘पिताहमस्य जगतः’-आनन्द में भरकर बोलते थे। कभी-कभी चिल्लाकर भी बोलते थे- पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः। आपने शायद दूसरे मजहबों की किताबें पढ़ी होंगी? मैं सत और असत दोनों हूँ। ‘सदसच्चाहमर्जुन’। यह बोलने वाला ईश्वर, हमारे कृष्ण के सिवाय, दूसरे किसी मजहब का ईश्वर ऐसे नहीं बोलता। मैं ही सत हूँ, मैं ही असत हूँ। ऐसे बोलने वाला ईश्वर ‘मृत्युः सर्वहरश्चाहम्’[2]-मैं मौत हूँ। और फिर भी आप लोगों को आश्चर्य हो जाता है कि ‘द्यूतं छलयतामस्मि’[3] क्यों बोलते हैं? अरे भाई जब हम असत हैं, सत है- मृत्यु है-‘जीवनं सर्वभूतेषु’ (7.9)। सबका जीवन है और ‘मृत्युः सर्वहरश्चाहम्’।[4] वही मृत्यु है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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