गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 6
देखो सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त में कौन है? एक आठ वर्ष का बालक अध्यात्म-रामायण सुनने के लिए रोज आता था। पूरा अध्यात्म-रामायण सुनाया और वह आकर पूरे समय बैठता था। एक दिन उसने पूछा-स्वामी जी, आप बीच में बोलते थे तत्त्वज्ञान, ब्रह्मज्ञान-यह सब क्या होता है? आठ वर्ष की उम्र है। मैंने कहा-देख घड़े में जो माटी रहती है न, उसको तत्त्व बोलते हैं, माटी तत्त्व है और उसमें घड़ा गढ़ा हुआ है। समझ गये? हाँ समझ गया। अच्छा घड़ा जिसमें गढ़ा हुआ है उसका नाम माटी है और माटी जिसमें गढ़ी हुई है, उसका नाम ब्रह्म है, समझ गये? बोला-हाँ, समझ गया। माटी को समझना तत्त्वज्ञान है और माटी जिसमें गढ़ी हुई है, उसको समझना ब्रह्मज्ञान है। संतोष हो गया उसको। ये जो आदि, मध्य, अन्त दिखायी पड़ता है, यह किसमें गढ़ा हुआ है? यह मत समझना कि यह बन्धन पूरब से आता है। हम अपनी शक्ति को समझते नहीं। यह जो सपना आता है? भगवान ने बड़ी कृपा करके दिया यह। इससे हम अपनी मानसिक शक्ति को समझ पाते हैं। जहाँ रथ नहीं है वहाँ रथ, जहाँ पथ नहीं है वहाँ पथ-जहाँ अथ-इति नहीं है वहाँ अथ-इति-किसने बनाया रथ, पथ? एक दिन मैंने स्वप्न में देखा था कि कल्याण-सम्पादन का जो विभाग है, वहाँ लक्ष्मण नारायण गर्दे, नन्द दुलारे वाजपेयी, माधव जी, देवधर जी ये सब इटली का युद्ध देखने गये। वहाँ जाकर हमको नीचे उतारकर छोड़ दिया और स्वयं हवाई जहाज लेकर उड़ गये। हम पुकारें कि अरे बाबा! हमको भी ले चलो-हमको भी ले चलो! ये लोग कोई सुने नहीं। लेकिन इतने में सपना टूट गया तो न हवाई जहाज, न देवधर जी, न माधव जी, कोई नहीं। मैंने पूछा क्यों माधव जी, रात में तुमने हमसे ऐसा व्यवहार क्यों किया? बोले-हमको तो मालूम नहीं है। आप लोगों को तो ऐसा नहीं करना चाहिए था। बोले-बाबा, न तो हम इटली गये, न हवाई जहाज न हम, न तुम! देखो, वह निर्माण किसने किया थाॽ और जिस समय निर्माण हुआ था, बिलकुल सच्चा। उस समय झूठा नहीं मालूम पड़ता था। यह है हमारे मन की शक्ति। विश्वामित्र ने जो नयी सृष्टि बनायी थी, वह शक्ति विश्वामित्र को कहाँ से मिली थी? सारे संसार को संहार करने की शक्ति-हमारी सुषुप्ति, हम सब समेटकर सो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज