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- “अधिरूढ़- महाभाव सदा राधार प्रेम।
- विशुद्ध निर्मल जेनो दशवान् हेम।।
- कृष्णेर दर्शन यदि पाय आचम्बिते।
- नाना भाव- विभूषणे हय विभूषिते।।
- अष्ट सात्त्विक, हर्षादि व्यभिचार आर।
- सहज प्रेम विंशति भावअलंकार।।
- किलकिञ्चित, कुट्टमित, विलास, ललित।
- बिब्बोक, मोट्टायित, आर मौग्ध, चकित।।
- एतो भाव-भूषाय भूषित राधा अंग।
- देखिया उछले कृष्णेर सुखाब्धितरंग।।
- ‘किलकिञ्चित’ भाव-भूषार शुनो विवरण।
- जे भूषाय भूषित राधा हरे कृष्णमन।।
- राधा देखि कृष्ण यदि छुँइते करे मन।
- दानघाटि-पथे जबे वर्जेन गमन।।
- जबे आसि माना करे पुष्प उठाइते।
- सखी आगे चाहे यदि अंगे हस्त दिते।।
- एइ सब स्थाने ‘किलकिञ्चित’- उद्गम्।
- प्रथमेइ हर्ष सञ्चारी मूल कारण।।
- आर सात भाव आसि सहजे मिलय।
- अष्टभाव – सम्मिलने महाभाव हय।।
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