श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः- माधुर्यवारिधिमदाम्बु तरंगभंगी (माधुर्यवारिधिस्तत्रोद्गता ये कन्दर्पमदास्त एव अम्बुतरंगा यस्मिन् तत्) श्रृंगारसंकुलितशीत- किशोरवेशम् (श्रृंगारो वेशरचनं तेन संकुलितो युक्तश्च शीतः सर्वतापहरश्च किशोरवेशस्तद् वपुर्यस्य तत्) आमन्दहासललिताननचंद्र बिम्बम् (आमन्दोऽतिमन्दस्तयैव गम्यो यो हासस्तेनललितम् आननविम्बं यस्य तत्) इदम् आनन्दसंप्लवम् (उच्छवलितानन्द प्रवाहम्) मे मनोऽनुप्लवताम् (उन्मज्जननिमज्जनादिभिरत्रैव आक्रीडतामित्यर्थः)।।14।। अनुवाद- माधुर्यवारिधि की मत्ततारूपी तरंगभंगिमा द्वारा यो श्रृंगार या वेशरचना की गई है, उससे सभी प्रकार के तापों को हरने वाला (जो) किशोर वपु और ईषत् हास्य द्वारा अति सुललित बना (जो) कृष्णाननचंद्रबिम्ब- इस उच्छवलित निमज्जित हो क्रीड़ा करे।।14।। कृष्मवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वसन्ततिलकं छन्दः
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