श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – हे देव ! वदनेन्दुविनिर्जितः शशी दशधा (दशखण्डमात्मानं कृत्वा ते) पदं प्रपद्यते (ततः) अधिकां श्रियम् अश्नुतेतरां (एतत्) ते कियत् कारुण्यं विजृम्भितम्।।96।। अनुवाद- हे देव ! तुम्हारे वदनेन्दु के उदय होने से अपनी पराजय मानकर गगनशशि ने दस भागों में बँटकर तुम्हारे पादपद्मों में शरण ली है, इस प्रकार अपने और अधिक शोभा प्राप्त की है; यह तुम्हारी करुणा का अधिक प्रसार है।।96।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वैतालीयं छन्दः
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