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- ठाकुर आचार्य प्रभु, आमार प्रभुर प्रभु,
- एइ मोर भरसा अन्तरे।
- साधन भजन नाइ, संसार यातना पाइ,
- गुण शनि मन प्राण झुरे।।
- करुणा करिया मोरे, राखो निज पदतले,
- मो सम पतित केहो नाइ।
- मो अति तापित जन, करो कृपा निरीक्षण,
- तबे आमि ए ताप एड़ाइ।।
- ठाकुर वैष्णव मोहे, करो कृपा अनुग्रहे,
- सदा दोष नाहि जार मने।
- सहज आपन गुणे, दया करो दीन जने,
- तुआ पदे लइनु शरणे।।
- श्रीकृष्णकर्णामृत, अमृत हैते परामृत,
- लीलाशुक – वाणी – मनोरम।
- ताँर भावे मग्न हइ, कृष्णदास कवि जेइ,
- टीका कैला अति विलक्षण।।
- ताँहार करुणा हैते, सेइ तो टीकार मते,
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