श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – प्रणयपरिणताभ्याम् (श्रीराधाविषयकप्रेम्नैव परिणताभ्याम्) श्रीभरालम्बनाभ्याम् (श्रिय:शोभासम्पतेः भरस्य अतिशयस्य आश्रयाभ्याम्) प्रत्यहं नूतनाभ्याम् (दिने दिने नूतनाभ्याम्) प्रतिपदललिताभ्याम् (प्रतिक्षणं ललिताभ्याम्) प्रतिमुहुरधिकाभ्याम् (निमेषे निमेषे अधिकाभ्याम्) प्रस्फुरद्भयां लोचनाभ्यां प्राणनाथः किशोरः (श्रीकृष्णः) नः (अस्माकम्) हृदये प्रवहतु (अविच्छिन्नं स्फुरतु)।।13।। अनुवाद- प्रणयपरिणत, परम शोभा के आश्रय, प्रतिदिन नवीन, प्रतिक्षण ललित, प्रतिनिमेष मनोहर प्रस्फुरित (काँपते) नेत्रों से किशोर कृष्ण हम लोगों के हृदय में अविच्छिन्नरूप से स्फुरित हों।।13।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मालिनी छन्दः
संबंधित लेख
क्रमांक | श्लोक संख्या | श्लोक | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज