श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः – अहो (अत्याश्चर्ये) पादौ वाद- विनिर्जिताम्बुजवनौ (वादेन विनिर्ज्जिता-न्यम्बुजवनानियाभ्यां) पद्मालयालम्बितौ (पद्मालया लक्ष्मीस्तया आलम्बितौ आश्रितौ) पाणी वेणुविनोदन- प्रणयिनौ (पाणी हस्तौ वेणुविनोदने प्रणयिनौ सकौतुकौ) पयाप्त शिल्पश्रियौ (समस्त-शिल्पकलाकुशलौ) बाहू दोहदभाजनं मृगदृशाम् (बाहू व्रजसुन्दरीणां प्रेम्नो मनोरथस्य वा भाजनं पात्रम्) माधुर्यधाराकिरौ (माधुर्यधारां किरत इति तथा तौ)। वक्त्रं वाग्विषयाभिलंघितम् (वक्त्रं माधुर्य वागगोचरम्) तद् बालम् (सुकुमारम्) महः (ज्योतिः) किम्?।।58।। अनुवाद- अहों ! इनके चरणों ने कमलवन का गर्व नष्ट किया है, सो पद्यालया कमला ने इनका आश्रय ग्रहण किया है। इनके करकमल वेणु-विनोद में कौतुकी और समस्त शिल्पकलाओं के आश्रय हैं। इनकी भुजायें माधुर्यधारा- वर्षण द्वारा व्रजसुन्दरियों का मनोरथ पूरा करने की पात्र स्वरूप हैं। इनके मुख की शोभा वाक्य के अगोचर है। ऐसे ज्योतिर्म्मय किशोर ये कौन हैं?।।58।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शार्द्दूलविक्रीडितं छन्दः
संबंधित लेख
क्रमांक | श्लोक संख्या | श्लोक | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज