श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
अन्वयः चातुर्यैकनिदान-सीमचपलापांगच्छटामन्थरम् (चातुर्यं चतुरता तस्य एकं मुख्यनिदानं कारणं तस्य सीमा अवधिभूता चासौ चपल-अपांगच्छटा तया मन्थरयति स्तम्भयति व्रजवल्लवीस्तम्) लावण्यामृतवीचिलोलितदृशम् (लावण्यमेव अमृतं तस्य वीचिभिः तरंगैः लोलिते दृशो यस्य तम्) लक्ष्मीकटाक्षादृतम् (लक्ष्म्याः श्रीराधायाः कटाक्षैरादृतं यः तम्) कालिन्दीपुलिनांगनप्रणयिनम् (कालिन्दी यमुना तस्याः पुलिनमेव अंगनं क्रीड़ास्थानं यस्य तम्) कामावतारांकुरम् (कामावतारस्य अंकुरः यस्मात्तम्) मधुरिमस्वाराज्यम् (मधुरिमा मदुररसः स एव स्वाराज्यं यस्य मधुररसरुपमित्यर्थः) अमी नीलं बालम् (किशोरम्) वयम् आराध्नुमः। अनुवाद- जिनके चातुर्य के असीम निदानस्वरूपचपल अपांग (कटाक्ष)- छटा से व्रजसुंदरियों की गति मन्थर हो जाती है; लावण्यामृत– तरंग मालाओं से जिनकी दृष्टि चंचल है; राधारानी की कटाक्ष से जो आदृत हैं; कालिन्दीपुलिन जिनका अति प्रिय क्रीड़ास्थल है; जिनसे समस्त कामावतारों के अंकुर फूटते है; जो मधुरिमा के स्वाराज्य (स्वर्ग, सम्राट) हैं- उन्हीं नीलवर्ण किशोर का हम आराधना करते हैं।।। 3।। कृष्णवल्लभा |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शार्दूलविक्रीड़ितं छन्दः
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