श्रीकृष्णकर्णामृतम -अनन्तदास पृ. 95

श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज

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बर्होत्तंसविलासकुन्तलभरं माधुर्यमग्नाननं
प्रोन्मीलन्नवयौवनं प्रविलसद्वेणुप्रणादामृतम्।
आपीनस्तनकुड्मलाभि-रभितो गोपीभिराराधितं
ज्योतिश्चेतसि नश्चकास्तु जगतामेकाभिरामाद्भुतम्।। 4।।[1]

अन्वयः बर्होत्तंसविलासकुन्तलभरम् (बर्होत्तंस्य यः विलासः तद्युक्तः कुन्तलभरः यस्य तत्) माधुर्यमग्नाननम् (माधुर्ये तत्प्रवाहे मग्नमाननं यस्य तत्) प्रोन्मीलन्नवयौवनम् (प्रकर्षेण उन्मीलद् आविर्भवद् नवयौवनं यस्य तत्) प्रविलसद्वेणुप्रणादामृतम् (प्रकर्षेण विलसद् यः वेणुः तस्य प्रकृष्टः नादः एव अमृतं यत्र तत्) अभितः (चतुर्दिक्षु) आपनीनस्तनकुड्मलाभिर्गोपीभिराराधितम् (चुम्बनालिंगनादिभिः सोवितम्) जगताम् एकाभिरामाद्भुतं ज्योतिः (स्वपरप्रकाशकं मनोनेत्ररसायनं वस्तु) नः (अस्माकम्) चेतसि चकास्तु।। 4।।

अनुवाद- जिनके मस्तक पर कुञ्चित चिक्कण (चमकीली) केशराशि का मोहनचूड़ा मोरपंखों से सुशोभित है; जिनका वदन माधुर्यरस प्रवाह में मग्न है; जो समुदित नवयौवन लावण्य से समुज्ज्वल हैं; जो वेणु से अमृतप्रवाह की तरह स्वरलहरियों का विस्तार कर रहे हैं; जो चारों ओर स्थिता व्रजदेवियों के पीन कुच-कुट्मलों द्वारा परिसेवित हैं- विश्व की ऐसी परम रमणीय कोई एक अद्भुत ज्योति हमारे हृदयों में प्रकाशित हो।। 4।।

कृष्णवल्लभा
इदानीं हृदि तत्स्फूर्तिमाशास्ते बर्हेति। ज्योतिः प्रकाशकम्, यत् प्रकाशेन सर्वं प्रकाशते तदित्यर्थः। एतेन सर्वोज्ज्वलत्वं दर्शितम्। नोऽस्माकं चेतसि चकास्तु प्रकाशताम्। ज्योतिरिति किं ब्रह्म, न-गोपिभिरा-राधितं सेवितम्। ब्रह्मापि स्त्रीणामाराधितं भवति; न तथा- आपीनस्तनकुड्मलाभिरापीना अतिकठिना; स्तना एवं पद्यकुड्मला यासां ताभिः। नवकिशोरीभिरित्यर्थः। यद्वा, आ ईषत्पीना नवकिशोरीत्वात्स्तनकुड्मला यासां ताभिः। अन्यापि देवता कुड्मलैराराध्यते।

कुड्मलो मुकुलोऽस्त्रियाम् इत्यमरः[2]

सर्वतः परमानन्दस्वरूपत्वञ्चाह- जगतामेकाबिरामाद्भुतम्। जगतां जगद्वर्तिनां मध्ये एकं मुख्यम्। अभिराममभिरमयत्यानन्दयति तच्चाद्भुतञ्चेति। एतादृश-सौन्दर्यमन्यत्र कुत्रापि नास्ति। अत्रैवोपलक्षणमित्यर्थः। तदुक्तं तृतीये (भा. 3/2/12)-

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शार्दूलविक्रीडितं छन्दः
  2. 2/4/16

संबंधित लेख

श्रीकृष्णकर्णामृतम -अनन्तदास
क्रमांक श्लोक संख्या श्लोक पृष्ठ संख्या
(अकारादिक्रम से)
1. 99. अखण्डनिर्वाणरस 947
2. 90. अखिलभुवनैक 889
3. 60. अग्रे समयग्रयति 689
4. 36. अधीरबिम्बाधर 440
5. 27. अधीरमालोकित 333
6. 112. अनुग्रह-द्विगुण 1031
7. 10. अपांगरेखाभि 147
8. 15. अव्याजमञ्जुल 199
9. 41. अमून्यधन्यानि 494
10. 44. अश्रान्तस्मितमरुणा 528
11. 2. अस्ति स्वस्तरुणी 41
12. 28. अस्तोकस्मितभर 353
13. 51. अहिमकरकरनिकर 600
14. 87. आचिन्वानमहन्य 865
15. 67. आद्रवलोकित 736
16. 54. आनम्रासितभ्रवो 627
17. 70. आन्दोलिताग्रभुज 756
18. 43. आम्यां विलोचनाभ्याम 519
19. 19. आमुग्धमर्ध 136
20. 39. आलोललोचन 466
21. 110. ईशानदेवचरणा 1019
22. 59. एतान्नामविभूषणं 681
23. 63. कदानु कस्यां 705
24. 26. कदा वा कालिन्दी 322
25. 7. कमनीयकिशोर 124
26. 52. करमलदल 610
27. 86. करौ शरदिजाम्बुज 859
28. 20. कलक्वणितकंकणं 244
29. 91. कान्ताकुचग्रहण 896
30. 100. कामं सन्तु सहस्रश: 952
31. 25. कारुण्यकर्बुकटाक्ष 313
32. 72. किमिदमधरवीथी 771
33. 42. किमिह कृणुम: 505
34. 53. कुमुमशर-शरसमर 619
35. 95. केयं कान्ति: 960
36. 101. गलद्‌ व्रीडालोंला 960
37. 3. चातुर्यैकनिदानसीम 74
38. 74. चापल्यसीम 784
39. 61. चिकुरं वहलं 694
40. 89. चित्रंतदेतच्चरणारविंद 882
41. 1. चिन्तामणिजयति 11
42. 108. जय जय जय 1007
43. 55. तत्‌ कैशोरं तच्च 638
44. 97. तत्त्वन्मुखं 935
45. 73. तदिदमुपनतं 777
46. 88. तदुच्छवसितयौवनं 876
47. 85. तदेददाताम्र 854
48. 18. तरुणारुण 221
49. 32. त्वच्छैशवं त्रिभुवना 393
50. 81. त्रिभुवनसरसाभ्यां 833
51. 109. तुभ्यं निर्भरहर्ष 1013
52. 76. तेजसेऽस्तु नमो 804
53. 80. दूराद्विलोकयति 829
54. 109. तुभ्यं निर्भरहर्ष 1013
55. 111. धन्यानां सरसानुलाप 1024
56. 77. धेनुपालदयिकता 809
55. 94. नाद्यापि पश्यति 913
56. 12. निखिल- भुवन 171
57. 30. निबद्धमुर्धाञ्जलि 374
58. 33. पर्याचितामृतरसानि 408
59. 48. परादृश्यं दूरे पथि 567
60. 62. परिपालय न: 700
61. 9. पल्लवारुणपाणि 138
62. 71. पशुपाल- बाल 762
63. 58. पादौ वादविनिर्जिता 674
64. 31. पिच्छावतंस 383
65. 34. पुन: प्रसन्नेन्दु 422
66. 84. पुष्पानमेतत्‌ 849
67. 13. प्रणयपरिणताभ्यां 183
68. 104. प्रेमदण्च मे 983
69. 46. बहलचिकुरमारं 544
70. 47. बहलजलदच्छाया 554
71. 4. बर्होत्तंसविलास 95
72. 35. बालेन मुग्धचपलेन 430
73. 69. बालोऽयमालोल 750
74. 107. भक्तिस्त्वयि स्थिरतरा 999
75. 102. भवनं भुवनं 968
76. 8. मदशिखण्डिशिखण्ड 130
77. 64. मधुरमधरबिम्बे 710
78. 5. मधुरतरस्मितामृत 110
79. 92. मधुरं मधुरं 901
80. 16. मणिनूपुरवाचालं 208
81. 17. मम चेतसि 214
82. 29. मयि प्रसादं मधुरै: 364
83. 14. माधुर्यवारिधि 192
84. 65. माधुर्यादपि मधुरं 720
85. 105. माधुर्येण विवर्धन्तां 989
86. 75. माधुर्येण द्विगुणशिशिरं 797
87. 68. मार: स्वयं नु 743
88. 6. मुकुलायमान 117
89. 78. मृदुक्वणन्नूपुर 817
90. 106. यानि त्वच्चरितामृतानि 662
91. 38. यावन्न मे नवदशा 455
92. 37. यावन्न में निखिल 448
93. 50. लग्नं मुहुर्मनसि 587
95. 49. लीलाननाम्बुजमधीर 578
94. 45. लीलायिताभ्यां 537
95. 66. वक्ष:स्थले च विपुलं 728
96. 96. वदेन्दुविनिर्जित: 929
97. 22. विचित्रपत्रांकुर 268
98. 56. विश्वोपप्लवश्मनैक 651
99. 24. शिशिरीकुरुते कदा 303
100. 98. शुश्रूयसे शृणु 942
101. 93. श्रृंगाररस सर्वस्वं 908
102. 83. सर्वज्ञत्वे च मौग्धे 843
103. 23. सार्धं समृद्धैरमृता 278
104. 79. सोऽयं विलासमुरली 823
105. 82. सोऽयं मुनीन्द्रजन 839
106. 21. स्तोकस्तोकनिरुध्य 254
107. 11. हृदये 156
108. 40. हे देव 473
- - अंतिम पृष्ठ 1041

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