श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
श्रील प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद ने इसकी भावसाधना का भी उल्लेख किया है-
‘अपना परम अभीष्ट श्रीराधापददास्य हृदय में धारण कर शिखिपिच्छिमौलि श्रीकृष्ण का सर्वदा ध्यान, सर्वदा उनका नामकीर्तन, उनके श्रीचरणाम्बुजों की नित्य परिचर्या और उनका मंत्रराज नित्य जप कर उनके अनुग्रह से मेरा परम अनुराग-उत्सव कब उत्पन्न होगा? श्रीलीलाशुक कहते हैं- व्रजांगनाओं के साथ तुम्हारे दर्शन अति दुर्लभ हैं, सही है, फिर भी तुम्हारी करुणा ही तुम्हारे वैसे स्वरूप की प्राप्ति सुलभ कर देती हैं। श्रीकृष्ण अपार करुणा के सिन्धु हैं, शरणागत के प्रति उनकी कृपा में किसी प्रकार की कृपणता नहीं। विशेषतः व्रजधाम का आश्रय लेने वाले प्रपन्न जनों के प्रति उनकी करुणा अजस्रधार हो बरसती है। हाँ, वृन्दावन में जड़ीय वस्तु कुछ भी नहीं, सब सच्चिदानन्दमय है- इस धारणा के बिना व्रजवास सफल नहीं होता। श्रील प्रबोधानन्द सरस्वतीपाद लिखते हैं’- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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