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- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- शुनो ओहे विदग्धशेखरे।
- शुनिते यदि इच्छा रहे, सावधाने शुनो ओहे,
- पूर्वे जतो वर्णे कविवर।।
- कटाक्ष ना करि तारे, केबा ताते चित्ते धरे,
- चंद्र- पद्म- तुल्य तव मुख।
- जे सब वर्णिया आछे, सेइ कथा केबा वाछे,
- शुनो कहि कारण अनेक।।
- एइ जतो चंद्रगण, तुया मुख निर्मञ्छन,
- करि दूरदेशे फेलाइते।
- प्रदीपेर तुल्य बोलि, जे मोर रचनावली,
- दीपतुल्य कहि एइ मते।।
- ए तोमार मन्द स्मिते, सर्वोपमावली जिते,
- जययुक्त सदाइ विराजे।
- अखण्ड निर्वाण- रस, प्रवाह आनन्द यश,
- देखो देखो एइरूप साजे।।
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