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- बहुरस अन्तराणि, न्यक्कार करिते धनी,
- जे स्मित विखण्ड करि बोलि।
- एइतो स्वभाव जार, हेनो स्मित जाते आर,
- उपमा दिबारे शक्ति धरि।।
- सुधासिन्धु रसे जेइ, हेनो स्मित जाते जयी,
- सत्य माधुर्य रसानन्द।
- ताहार परमकाष्ठा, सर्वमनो-नेत्र-इष्टा,
- सम केहो ना हय निर्बन्ध।।
- कृष्ण कहे- कतो कतो, रसिक मधुर जतो,
- लोकमाझे सदा निवसय।
- केने ताहा सबा छाड़ि, मोसहे विवाद करि,
- मोरे स्तव करो अतिशय।।
- इहा शुनि सेइ गणे, अवज्ञा करिया भणे,
- कृष्ण प्रति सविनय वाणी।
- ‘कृष्णकर्णामृत’ कथा, अमृत हैते परामृता,
- शुनो सबे सर्वरसखनि।।98।।
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