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- राय कहे- ताहा शुन प्रेमेर महिमा।
- त्रिजगते नाहि राधा-प्रेमेर उपमा।।
- गोपीगणेर रासनृत्य-मण्डली छाड़िया।
- राधा चाहि वने फिरे विलाप करिया।।
- कंसारिरपि संसारवासनाबद्ध – श्रंखलाम्।।
- राधामाधाम्य हृदये तत्याज व्रजसुन्दरीः।।
- इतस्ततस्तामनुसृत्य राधिकामनंगवाणव्रणखिन्नमानसः।
- कृतानुतापः स कलिन्दनन्दिनीतटान्तकुञ्जे विषसाद माधवः।।”[1]
- “ए-दुइ श्लोकेर अर्थ विचारिले जानि।
- विचारिते उठे जेनो अमृतेर खनि।।
- शतकोटि - गोपीसंगे रासविलास।
- तार मध्ये एकमूर्ति रहे राधापाश।।
- साधारण – प्रेम देखि सर्वत्र समता।
- राधार कुटिल प्रेमे हइल वामता।।
- क्रोध करि रास छाड़ि गेला मान करि।
- तारे ना देखिया व्याकुल हइल श्रीहरि।।
- शतकोटि गोपीते नहे काम निर्वपण।
- इहातेइ अनुमानि श्रीराधिकार गुण।।”[2]
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