श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
स्मृति और अलंकार आदि शास्त्रों में भी श्रीकृष्ण की बाल्य पौगण्ड और कैशोर इन त्रिविध वयसों के संदर्भ में श्रीकृष्ण के श्रीअंग की अति सुकुमारता के कारण सोलह वर्ष की वयस (तक) बाल्य शब्द से निरूपित हुई है। अतएव इस श्लोक में बाल शब्द से किशोर कृष्ण समझे जाते हैं। ‘बाल’ शब्द की बालक व्याख्या करने से ‘कामावतारांकुरम्’ की कोई संगति नहीं होती। इसी प्रकार आगे भी जहाँ-जहाँ श्रीपाद लीलाशुक ने ‘बाल’ ‘शिशु’ आदि शब्द प्रयोग किये हैं, वहाँ-वहाँ किशोर अर्थ ही समझना होगा। वह किशोर कैसा है? कहते हैं ‘नीलम्’ इंद्रनीलमणि की तरह श्यामवर्ण मूर्त श्रृंगाररस। श्रृंगाररस का वर्ण श्याम होने के कारण ‘नील’ शब्द का प्रयोग किया गया है। श्रीभरतमूनि के नाट्यशास्त्र में लिखा है- “श्यामो भवति श्रृंगारः”। श्रीकृष्ण साक्षात् श्रृंगार हैं- “श्रृंगारः सखि! मूर्तिमानिव मधौ मुग्धो हरिः क्रीडति” (गीतगोविन्द)- किसी सखी ने राधारानी से कहा- ‘हे सखि राधे! मुग्ध श्रीकृष्ण मूर्तिमान् श्रृंगाररस की तरह क्रीड़ारस में मत्त हैं।’ ‘नीलम्’ शब्द की व्याख्या में श्रीभट्ट गोस्वामिपाद ने लिखा है- “नीलं श्याम फुल्लेन्दीवरकान्तं श्रृंगाररस-सर्वस्वमित्यर्थः”, अर्थात् नील अर्थ में प्रफुल्लित इन्दीवर या नीलकमल की तरह जिनके अंग की कान्ति है, जो श्रृंगाररस के सार-सर्वस्व हैं। इनका रूप देखकर ही हम लोग इनकी दासी हुई हैं। ये सुंदर हैं, वैसे ही सुरसिक हैं; तभी रासरंग स्थली कालिन्दीपुलिन पर इनका सतत अवस्थान है। कालिन्दीपुलिन- प्रांगण इन्हें अत्यंत प्रिय है। माधव-चित्तहारी माधवीचतुः शालिका- अंगन (माधवीलता कुञ्ज) में ये सतत विलसित हैं। श्रीश्रीरासलीला है सर्वलीलामुकुटमणि। इस लीला में समस्त रसों का समावेश है। इसलिए इसका नाम है रासलीला। रस शब्द के उत्तर समूहार्थ में ‘ष्ण’ प्रत्यय से..... ‘रास’ शब्द निष्पन्न है। इसीलिए रसिकशेखर रसास्वादन- लोलुप साक्षात् श्रृंगार श्रीकृष्ण का अतिशय प्रिय स्थान है रासस्थली, और तभी उनकी वहाँ सतत् स्थिति है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चै. च.
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