गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-6 : अध्याय 9
प्रवचन : 4
पृथ्वी बनकर आपको ऊपर उठाये हुए हैं - पानी बनकर आपको तर करते हैं। गरमी बनकर आपके टेंपरेचर को ठीक रखते हैं। कभी-कभी चढ़ उतर जाता है। वही साँस बनकर हमारे शरीर को जीवन देता है। यही हमारे शरीर में अवकाश है। यही हमारे शरीर में ज्योति हैं। जहाँ देखता हूँ वहाँ तुम्हीं तो हो। परमात्मा का दर्शन कैसे होगा? ‘सततं कीर्तयन्तो मां’ - कीर्तन करो - ‘कीर्तन शब्द ने’ - यह कीर्तन शब्द का आजकल जो अर्थ प्रचलित है कि ‘ढोलक बजाओ जोर-जोर से गाओ’ यह तो महाराज, खुदा जब बहुत दूर होता है - सातवें आसमान में होता है, तो वहाँ तक तुम्हारी आवाज पहुँच जाय इसके लिए बड़े जोर से चिल्लाते हैं। कीर्तन शब्द का अर्थ होता है ‘कीर्तन शब्दने’। कीर्त धातु का अर्थ है सं शब्द अच्छे शब्दों में किसी वस्तु का वर्णन करना। ‘संकीर्तनं भगवतो गुण कर्म नाम्ना’ - भगवान के गुण का, चरित्र का, नाम का संकीर्तन बड़े प्रेम से करो, मधुर स्वर से। बाबा, वह इतना सुकुमार है भगवान कि उसके लिये कड़ी आवाज की तो जरूरत ही नहीं है। ऐसा सुमधुर संगीत कि उसके कान में गुदगुदी पैदा हो जाये, इतने मधुर स्वर में बोलो। ‘सततं’ - हमेशा, आज बड़ी धूप निकली है, आज बड़ा अन्धेरा छाया हुआ - आज बड़ी गरमी पड़ रही है और दोनों को मालूम है। यह नहीं कि किसी एक को मालूम है, दूसरे को बताना है। बताने की क्या जरूरत है? अरे कहो न देखो भगवान की लीला - कल ठण्ड डाल रहे थे, आज गरमी डाल रहे हैं। उसमें भगवान को जोड़ो। ‘सततं कीर्तयन्तो मां।’ कोई भी प्रसंग हो उसमें परमात्मा का कीर्तन जोड़ लो। हमारे चैतन्य महाप्रभु वाले सततं शब्द का अर्थ दूसरा करते हैं - लगातार नहीं - ‘सतत वीणादिकं वाद्यं’ बाँसुरी लो, वीणा लो, सितार लो और उस पर भगवत्कीर्तन कर लो। ‘सततं कीर्तयन्तो वीणादिकं वाद्यं यन्त्रं’ - सततं का अर्थ है तार टूटने न पावे। देखो जब सूत से वस्त्र बनाते समय एक सूत टूट जाता है तो मशीन बन्द हो जाती है। यदि परमात्मा के साथ, अपने खजाने के साथ, अपने उत्सके साथ, अपने उद्गम के साथ, जो तुम्हारा सम्बन्ध है, वहाँ से जो रस्सी जुड़ी हुई है, यदि पावर हाउस से तुम्हारी बिजली का सम्बन्ध नहीं रहेगा तो क्या होगा? बल्ब कैसे जलेगा। ‘सततं कीर्तयन्तो मां’। तार जुड़ा हो। ‘यतन्तश्च दृढव्रताः’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्लोक 9.18
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