गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-5 : अध्याय 8
प्रवचन : 6
हाथी के गले से फूल की माला गिर गयी। शरीर गिर गया और बिल्कुल जाग्रत अवस्था में बैठे हैं। इस तरह जो शरीर का त्याग करता हुआ जाता है, उसको परमगति की प्राप्ति होती है। परन्तु यह परमगति कैसे प्राप्त हो? इसके लिए जीवन भर, यह नहीं कि उसी दिन - जब मरने लगेंगे तब बैठ जायँगे, जब मरने लगेंगे तब छोड़ देंगे। इसके लिए अभ्यास चाहिए। यह नहीं कि माँ ने बेटी से कहा कि बेटी रोट बना लो तो बोली माँ अभी से कौन बनावे जब बनानी होगी बना लेंगे। तो उस दिन तो बाबा रोटी टेढ़ी हो जावेगी, आटा ही ठीक नहीं गूँथेगा। उसके लिए भी अभ्यास चाहिए। यह नहीं कि जब इन्जेक्शन लगाना होगा तब लगा लेंगे। पहले तकिये में लगाकर सीखते हैं। अभ्यास तो चाहिए न उसके लिए। यह नहीं वकील बनेंगे और जाकर जज के सामने बोलना शुरू कर देंगे। लड़खड़ा जायेंगे। पाँव काँपने लगेंगे। बोलती बन्द हो जायेगी। उसके लिए अभ्यास चाहिए। जीवन में अभ्यास चाहिए। अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः। मृत्यु के समय भी भगवान सुलभ हो जाते हैं। परन्तु कब सुलभ होते हैं, जब हम जीवनकाल में उनका स्मरण करते हैं। ऊँ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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