गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-1 : अध्याय 1-4
प्रवचन : 4
परमेश्वर को चाहना सच्चाई को चाहना है, परमेश्वर को चाहना सच्चे ज्ञान को चाहना है और परमेश्वर को चाहना सच्चे आनन्द को चाहना है। परमेश्वर का अर्थ है जो सबके भीतर एक है और जिसमें राग-द्वेष की गन्ध भी नहीं, ऐसे परमेश्वर को प्राप्त करना ही ब्राह्मी स्थिति है और इसको प्राप्त करके किसी को विमोह नहीं होता - नैनां प्राप्य विमुह्यति। संस्कृत भाषा में मोह शब्द का अर्थ होता है जिसमें सोचने-विचारने की शक्ति न रहे। मा, ऊहा=जिसमें ऊहा नहीं- उहापोह की शक्ति नहीं, उसका नाम मोह। अथवा मुह् वैचित्ये अपने चित्त को विपरीत हो जाना मोह है। वास्तव में महत्त्व है तुम्हारा। उसको तो तुम देखते नहीं, संसार के महत्त्व को देखते हो। तुम अपना स्वरूप भूलकर दूसरे के स्वरूप में तन्मय हो गये हो। ब्राह्मी स्थिति प्राप्त हो जाने पर मोह नहीं होता। ब्राह्मी स्थिति की ऐसी महिमा है कि यदि वह जीवन भर किसी को प्राप्त न हो, किन्तु मरते समय क्षण भर के लिए भी उसकी प्राप्ति हो जाय तो मंगल हो जाता है। संसार के राग-द्वेष जीवात्मा को घसीटकर कहीं-का-कहीं ले जाते हैं। उसके अन्तःकरण को दूषित कर देते हैं। मनुष्य का अन्तःकरण मोटर की तरह है। उसमें जो कामनाएँ हैं, संकल्प हैं, वे ड्राइवर की तरह हैं। मनुष्य की कामनाएँ और संकल्प ही उसके अन्तःकरण को जहाँ-तहाँ घसीटते फिरते हैं। यदि किसी को ब्राह्मी स्थिति ब्रह्मनिर्वाण की हो जाती है। वास्तव में ब्राह्मी स्थिति मरने के समय ही नहीं, जीवन में ही प्राप्त करने की वस्तु है। जिसके जीवन में ब्राह्मी स्थिति आ जायेगी वह साक्षात परमेश्वर की तरह ही जीवित रहेगी। उसके जीवन का स्वरूप पूर्ण हो जायेगा। वहाँ न मृत्यु का भय रहेगा, न अज्ञान का, न संयोग का, न वियोग का। पूर्ण केवल पूर्ण होता है, उसमें किसी प्रकार की अपूर्णता नहीं रहती। अब निर्वाण शब्द का अर्थ केवल उत्प्रेक्षा की दृष्टि से आपको सुनाते हैं। आप ‘वाण’ को लीजिये। ब और व में कोई भेद मत कीजिये। जब किसी को बाण लगता है तो पहले उसे दुःख होता है, दर्द होता है। बाद में वह बेहोश हो जाता है और मर भी जाता है। दुःख होना आनन्द के विरुद्ध है, बेहोश होना ज्ञान के विरुद्ध है और मरना सत् के विरुद्ध है। इसलिए निर्वाण का अर्थ वह स्थिति है जिसको प्राप्त कर लेने पर न आपको दुःख होगा, न बेहोशी होगी और न आप मृत्यु को प्राप्त होंगे। आपका जीवन परिपूर्ण हो जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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