गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-4 : अध्याय 7
प्रवचन : 2
तो फिर वासना छुड़ाने की विधि क्या बतायी कि मय्यासक्तमनाः। यदि हमारे मन में परमेश्वर के प्रति प्रेम है, तो हम अपना काम ठीक करेंगे और यदि पक्षपात होगा मन में और क्रूरता होगी तो रागद्वेष होगा तथा अपना कर्म ठीक नहीं कर सकेंगे। इसलिए संसार के रागद्वेष को मिटाने के लिए परमेश्वर में प्रीति चाहिए। मय्यासक्त्मनाः। प्रीति करो परमेश्वर से, तो संसार में रागद्वेष नहीं होगा। संसार में राग होगा तो दिल रंगीन हो जायगा। फिर तो जिससे राग है वही वही दीखेगा। यदि द्वेष होगा तो अन्तःकरण में आग लग जायेगी, जलन हो जायेगी। ज्वलनात्माक चित्तवृत्ति का नाम द्वेष है और रंनजनात्मक चित्तवृत्ति का नाम राग है। अन्तःकरण को किसी रंग में रँग देना राग है और अन्तःकरण में आग लगा देना, जलन पैदा कर लेने का नाम द्वेष है। दोनों स्थितियों में अपने जो पाँव पड़ते हैं वे गलत हैं। अब दूसरी बात- आसक्ति हो भगवान से और आश्रय हो भगवान का। कर्म कर्म का फल नहीं देता, भगवान कर्म का फल देता है। मुनीम प्रेम करता है पुत्र से, पत्नी से, शरीर से, और आश्रय रखता है सेठ का! उसका दिल दुहरा हो गया। आप आश्रय भी रखिये परमेश्वर का और प्रेम भी कीजिए परमेश्वर से। यदि आश्रय दूसरा रहेगा और प्रेम दूसरे से रहेगा तो प्रेम द्विधा-विभक्त हो जायेगा। तो तीन बातें कहीं-कर्ता के सम्बन्ध में। अब बोलते हैं- असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु।[1] ज्ञान मे दो बातें हीनी चाहिए। असंशय और सम्रग। ज्ञाता में सन्देह नहीं रहना चाहिए। और वस्तु का अधुरा ज्ञान नहीं होना चाहिए। यदि आपको ज्ञान भी है और संशय भी है तो आप जैसे देख रहे हैं। ज्ञान सुनिश्चित होना चाहिए। आसंशय समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्दछृणु। ज्ञास्यसि क्रिया के दो विशेषण- एक असंशयं और एक समग्रं। तो असंशय है अपना अन्तःकरण अपने अन्तःकरण में संशय नहीं होना चाहिए और समग्रं है विषय। जिस विषय को तुम जानते हो, उसकी पूरी जानकारी प्राप्त करो। वह समग्रं हो। उसमें ज्ञान, बल, वीर्य ऐश्वर्य जो कुछ है उसका वह वैभव भी जानो, उसका जो स्वरूप है वह भी जानो। पानी क्या है यह भी जानो और उससे बर्फ कैसे बनता है यह भी जानो। दूध क्या है, यह भी जानो। उससे दही, मलाई, रबड़ी, छेना कैसे बनता है यह भी जानो। एक दूध का वैभव है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 7.1
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