गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 7
सत्त्व, रज, तम तीनों गुण इन्द्रियों से नहीं देखे जाते और जो देखने में आते हैं, वे तो जादुगिरी के खेल के समान हैं। उनमें फँसना नहीं चाहिए। इन गुणों को हम कैसे पहचानते हैं? कि जब हमारे मन की वृत्ति शान्त, प्रकाशमय, सुखमय रहती है, तब यह सत्त्वगुण का कार्य है और जब हमारी वृत्ति राग, तृष्णा से युक्त होती है, तब यह रजोगुण का कार्य है। और जब मोह, अन्धकार, तमस् में हमारी वृत्ति होती है तब वह तमोगुण का कार्य होता है। कार्य देखकर कारण का अनुमान होता है। जीवन में कुछ दोषों को यदि समेटकर देखना हो - माने कम-से-कम सिमटे हुए रूप में आप अपने दोषों को जान लें तो सावधान रहने में, बचने में, सुलभता होती है। राग, द्वेष, और मोह कुल ये तीन दोष है। एक तो हमारे जीवन में जितने दोष आते हैं, जब हम किसी वस्तु के, चीज के मोह में फँस जाते हैं। फिर राग, मुहब्बत कर बैठते हैं। यह चीज हमारे पास होनी जी चाहिए। यह भोग हमको मिलना ही चाहिए। यह आदमी हमारे साथ रहना ही चाहिए। हमारी स्थिति हमेशा ऐसी ही रहनी चाहिए। एक तो मुहब्बत के कारण हमारे जीवन में दोष आते हैं। उतना धन बनाये रखने के लिए उतने सम्बन्धी बनाये रखने के लिए। शरीर में वैसी ही अवस्था, वैसा ही बल बनाये रखने के लिए, अपने परिवार को उसी रूप में रखने के लिए मन में राग होता है। राग मोह के रूप में बदल जाता है। इसी प्रकार मन में द्वेष होता है। यह चीज नहीं होनी चाहिए। यह सामूहिक रूप से भी होता है और व्यक्तिगत रूप से भी होता है। यह आदमी ऐसा नहीं होना चाहिए। यह काम ऐसा नहीं होना चाहिए। वह वस्तु ऐसी नहीं होनी चाहिए। जैसे भगवान ने हम को जज बनाकर भेजा हो, हम किसी के पहरेदार हों। हम अपने को मालिक मान बैठते हैं कि यह चीज ऐसी नहीं होनी चाहिए। पहले समझा-बुझाकर काम लेना चाहते हैं, नहीं होता है, तो डाँट-डपटकर काम लेना चाहते हैं। और फिर भी नहीं होता है, तो दूसरे को नुकसान पहुँचाकर भी वैसा काम करना चाहते हैं। आप देखेंगे कि जीवन में जितने भी दोष आते हैं, उनमें कहीं राग है, मुहब्बत है, कहीं द्वेष है, नफरत है, दुश्मनी है। और कहीं मोह है। बिना समझे-बूझे हम उसके साथ जकड़ गये हैं। तो आप सत्त्वगुण, रजोगुण , तमोगुण को ढुँढने कहाँ जायेंगे? यह देखिये कि हमारा मन यह काम राग से, द्वेष से या मोह से तो नहीं कर रहा है? यही राग, द्वेष मोह हम से बहुत सारे काम करवाते हैं। हमारे पास इतना धन है, रहे, हो जाय, इस राग से हम लोगों के मन में लोभ, चोरी, बेईमानी, छल-कपट आता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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