गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-12 : अध्याय 15
प्रवचन : 1
अद्वैत ब्रह्मभाव की स्थिति कैसे होगी? सबमें देखो परमेश्वर को। यह बल्ब ही छोटे-बड़े होते हैं-बिजली एक होती है। लाउडस्पीकर में वही बिजली शब्द को ऊँचा कर देती है। पंखे में आकर वही बिजली हवा देती है। एअर कंडीशन में आकर ठंडक देती है। बल्ब में आकर रोशनी देती है। वही गन्ध का विस्तार करती है। विद्युत एक है। सबमें परमात्मा को देखो। बच्चे के लिए पंखा अलग है। बल्ब अलग है, लेकिन जो विद्युत-तत्त्व का ज्ञाता है, उसमें सबमें एक परमात्मा है। यह ज्ञान है। -इन्द्रपद भी हमेशा नहीं रहता है। टूटा जाता है। ब्रह्मा का पद भी हमेशा नहीं रहता। न तो ये साम्राज्य हमेशा रहे हैं, न सम्राट् हमेशा रहे हैं-न देवी-देवता हमेशा रहे हैं। सबमें जो एक परमात्मा है वही हमेशा की सीमा को पार कर रहता है। वही वस्तुओं की सीमा को पारकर रहता है। वह मजहबों में, जातियों में, प्रान्तों में, राष्ट्रों में, लोक-परलोक में कहीं भी अलग-अलग नहीं होता। उसी एक को पकड़ो- ज्ञानानां उत्तम ज्ञानम। वही सम्पूर्ण ज्ञानों का उत्तम ज्ञान है और उसके ज्ञानमात्र से ही परासिद्धि मिलती है और उसके ज्ञानमात्र से ही यह आत्मा परमात्मा हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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