गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 5
अर्जुन ने तो हाथ जोड़ दिया, थरथर काँपने लगे। अर्जुन का एक नाम किरीटी भी है। दस नाम अर्जुन के प्रसिद्ध है। हमारे घर में कर्मकाण्ड और ज्योतिष का काम होता था तो मैं उसको बहुत बढ़िया समझता था। हमारे पिता-पितामह सब करते थे। मैं ज्योतिष का रहस्य जानता हूँ। परन्तु उसकी पोलपट्टी भी हमको सब मालूम है। यह तो लोगों के मन में धैर्य नहीं होता। किरीटी भगवान एक नाम है। जब बैल, गाय व भैंस के पाँव में एक बीमारी होती है, गाँव में उसको खड्गवा बोलते हैं। तो अर्जुन के दस नाम पीपल के पत्ते पर लिखकर उसको पशु के गले में बाँधा जाता है। उन दस नामों में ‘अर्जुनः, फाल्गुनः, जिष्णुः, किरीटी, श्वेत-वाहनः, वीभत्सुः, विजयः, पार्थः, सव्यसाची, धनंजयः’-ये सब अर्जुन के नाम हैं। किरीटी माने जो किरीट धारण किये हुए हो उसका किरीटी नाम होता है। उसने ज्यों केशव का वचन सुना तो ‘कृताञ्जलिर्वेपमानः’। हाथ उसके जुड़ गये। बाबा, जो कहो सो करने को तैयार हूँ। देखो कहीं कोई गलती न हो जाय। थरथर काँपने लगा। संस्कृत भाषा में-महाभारत के उद्योग पर्व में-तो लिखा है कि चूँकि कृष्ण के शरीर में-से रश्मियाँ निकलती हैं; बड़ी तेजस्विनी रश्मियाँ, किरणें निकलती हैं-इसलिए उनका नाम ‘केशव’ है। केशव शब्द का दूसरा अर्थ है-अर्जुन के केश भी बड़े सुन्दर हैं और श्रीकृष्ण के केश भी बड़े सुन्दर हैं। ‘प्रशस्ताः केशा अस्य इति केशवः’। इसका दूसरा अर्थ भी है-क, अ और ईश तीनों का जो प्रशासन करे-ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रशासक केशव। उनके सामने तो हाथ जुड़ गया और नमस्कार करके फिर से उसने श्रीकृष्ण से कहा-वाणी उसकी गद्गद् हो गयी थी और ‘भीतभीतः’ डरा-डरा-सा, डरे हुए से भी ज्यादा डरा ‘भीतादपि-भीताः’-जो श्रीकृष्ण के इस स्वरूप में लोग डरे-डरे लग रहे थे, उनसे भी अधिक डरा हुआ अर्जुन प्रणाम करके बोला-‘अर्जुन उवाच’- स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.36
संबंधित लेख
क्रमांक | प्रवचन | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज