गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 3
‘महात्मनः’ बड़ा भारी है शरीर जिसका-आत्मा शब्द का अर्थ संस्कृत में शरीर भी होता है। ‘महान् आत्मा शरीरं यस्य।’ इतना बड़ा शरीर है- न ओर न छोर, पूर्व की ओर यहाँ से अपनी नजर हम फेकें-फेंकते जायँ-कहीं पूर्व का ओर-छोर नहीं मिलेगा। कोई अपने मन से, बुद्धि से पूर्व की आदि ढूँढ़ना चाहे या पूर्व का अन्त ढूँढ़ना चाहे तो नहीं मिलेगा। पश्चिम का, ऊपर का, नीचे का आदि-अन्त नहीं मिलेगा। यदि आप सबका आदि अन्त ढूँढ़ना चाहें तो इससे फायदा क्या होगा? कौन-सी आमदनी हो जायगी इससे? क्या मुनाफा होगा? मुनाफा यह होगा कि आपको सत्य का ज्ञान हो जायेगा। तो ढूँढ़ने आप कहीं भी जावेंगे तो न अन्त मिलेगा न आदि मिलेगी। लेकिन हम लोग उस आदि, अन्त को ढूँढ़ लेते हैं। वह हमारा व्यापार है। वह आदि, अन्त कहाँ है? जहाँ हमारा ‘मैं’ है। वही से पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण, ऊपर, नीचे-सब वही से शुरू होता है। अगर आप अपने को ढूँढ़ लें तो देखेंगे हमसे शुरू होकर हमारे बायें, पूरब है। हमसे शुरू होकर हमारे दाहिने पश्चिम रहता है। हमसे शुरू होकर सामने दक्षिण है और हमसे शुरू होकर हमारे पीछे उत्तर है। उनका ओर-छोर यदि ढूँढ़ना हो तो ‘मैं’ को जानना पड़ता है। यदि ‘मैं’ को नहीं जानेंगे तो कोई चीज नहीं जान सकते। भूत की आदि आप जानने जाँय तो कभी मिलेगी? अज्ञानान्धकार में, घोर अन्धकार में, अज्ञान निद्रा में डूब जायेंगे। अच्छा भविष्य का अन्त ढूँढ़ने जायें तो कहीं मिलेगा? परन्तु यह जो वर्तमान है, यही से भूत की आदि है और यही भूत का अन्त है। और यहीं भविष्य की आदि है और भविष्य का अन्त है। इसके कहने का अभिप्राय है कि अपने मैं को जाने बिना जो कुछ भी हम जानना चाहते हैं उसमें सिवाय अज्ञान के और कुछ भी नहीं मिलेगा। इसलिए महात्मा लोग जो वासनानुसारी नहीं होते हैं कि हमें यह वस्तु चाहिए, ऐसी वस्तु चाहिए, यह चाहिए, वह चाहिए वह पहले जहाँ से वासनाएँ उठती हैं उसके मूल ‘मैं’ का अनुसन्धान करते हैं-कि आत्मा क्या है? इसी को ‘कोऽहम्’ बोलते हैं। इसी को सोऽहम बोलते हैं, मैं कौन हूँ? मैं वह हूँ। कौन ? कालका आदि, अन्त जहाँ से शुरू होता है। वह देश का आदि, अन्त जहाँ से शुरू होता है। वस्तुओं का भान जहाँ से प्रारम्भ होता है, वह मैं हूँ। उत्पत्ति कब हुई, कहाँ हुई, कैसे हुई, क्या हुई? यह ढूँढ़ने जाओगे तो कुछ नहीं मिलेगा। केवल अज्ञान हाथ लगेगा। लेकिन मालूम कैसे पड़ता है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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