गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 8
एक सज्जन हैं। हम लोग उनके यहाँ जाते हैं। वे कोई साधारण क्रिया करते हैं और उँगली पर हमको उठा लेते हैं। प्रबुद्धानन्द, विमलानन्द को भी उठा लिया। लेकिन उसमें एक बात देखने में आयी कि यदि रजस्वला स्त्री उठाने वालों में शामिल हो जाये तो वह प्रक्रिया बिल्कुल काम नहीं करती। जब उसको हटा देते हैं तब वे उठा सकते हैं। यह क्या संसार की प्रक्रिया है, इसको साधारण दृष्टि से नहीं समझ सकते हैं। वेद के मन्त्रों का जप अलग होता है। तन्त्र के मन्त्रों का जप अलग होता है और पुराण के मन्त्रों का जप अलग होता है और पंचरात्र के मन्त्रों का जप अलग होता है। जप ओठ हिलाकर करना कि गले से करना कि हृदय से करना कि मूलाधार से जप करना, इसका भी अलग-अलग प्रक्रिया होती है। इसको यज्ञ इसलिए कहते हैं कि बाहर अग्नि प्रज्ज्वलित करके ब्राह्मण बुलाकर वेद-मन्त्र का सही-सही उच्चारण करके किया जाता है। आप लोगों को मालूम होगा कि त्वष्टा ने इन्द्र को मारने के लिए एक वेद के मन्त्र का उच्चारण करके अग्नि में हवन किया और उस मन्त्र के उच्चारण में एक स्वर का अन्तर आ गया- केवल एक स्वर का-और उसका अर्थ हो गया कि इन्द्र को नहीं मारे-इन्द्र अपने शत्रु को मारे। एक स्वर के अन्तर से यह अर्थ हो गया। एक बार नारदजी को बड़ा अभिमान हो गया कि मैं संगीत का बड़ा भारी ज्ञाता हूँ। भगवान अभिमान नहीं देख सकते। एक बार नारदजी गन्धर्वलोक में गये। देखा कि राग-रागिनी कोई लंगड़ी हो गयी है, कोई लूली हो गयी है, कोई अन्धी हो गयी है। राग-रागिनी गन्धर्व-लोक में मूर्तिमान होकर रहती हैं-लेकिन सब अन्धी, लंगड़ी, लूली-नारदजी ने कहा-यह क्या हुआ? बोले महाराज? आप जो बेसुरा बजाते हो न! उससे हम लोगों का अंग-भंग हो गया है। बेसुरा राग बजाने से राग-रागिनियों का अंग-भंग हो जाता है। इसी प्रकार जब जप-मन्त्रों का ठीक-ठीक जप नहीं किया जाता तब उनका अंग-भंग हो जाता है। हमारे जीवन के उत्तम का, जिसका हम नाम लेते हैं-बड़ा समझकर नाम लेते हैं-राम-राम, कृष्ण-कृष्ण तो उनको उत्तम भगवत्-रूप समझकर नाम लेते हैं। उनको उत्तमता का हमारे अवतरण होता है और जब हमारे उच्चरण किये हुए शब्द जाकर उन भावमय मूर्तियों का स्पर्श करते हैं-तो हमारे भाव ऊर्ध्वगामी हो जाते हैं। यह बात प्रत्यक्ष देखने में आती है कि जो नीचे की शक्तियाँ हैं, निम्न शक्तियों से सब ऊर्ध्वमुखी होकर जप से ऊपर उठती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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