गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 7
भिखारी से भी नहीं लेना चाहिए। ये चन्दा करने वाले भिखारी ही तो होते हैं। यहाँ बताया-राजा एक विभूति हैं। राजसेवा तो शास्त्र में वर्जित है। सेवा भी वर्जित है। माने उसकी व्यक्तिगत सेवा में न रहना। उसके बहुत पास जाना, यह भी एक खतरे का काम है। पता नहीं कब उनका मूड बिगड़े? फिर वे तो फाँसी का ही हुकुम देंगे और उसकी कोई अपील नहीं। इसलिए उनके बिल्कुल निकट नहीं जाना चाहिए। राजसेवा का निषेध है। उसको शास्त्र में श्ववृत्ति बोलते हैं। श्ववृत्ति माने जैसे कुत्ते को पूँछ और जीभ हिलानी पड़ती है-ठीक वही काम करना पड़ता है। राजा की सेवा भी निषिद्ध है और जूआ भी निषिद्ध है और भगवान ने अपनी विभूतियों में इन दोनों की गणना की है। स्पष्ट रूप से शाण्डिल्य ने इसका निषेध किया कि ये द्यूत और राज सेवा को विभूति के रूप में भगवान ने वर्णन किया है, यह आराधना के लिए नहीं है। तब आराधना किनकी करनी चाहिए? तो जिनकी आराधना शास्त्र में वर्णित है। शास्त्र में वर्णित है माने मत्स्य, नृसिंह, वराह, वामन, कच्छप, परशुराम- इनकी आराधना कर सकते हैं और यहाँ देखो ‘आदित्यानामहं विष्णुः’ वाक्य में माने वामन। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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