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- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- कृष्णचंद्र ! एइ वर देहो तुमि मोरे।
- जे तुया चरितामृत, राधासह अविरत,
- रासकुञ्जलीला मनोहरे।।
- सेइ सेइ लीलागण, मोर हिये अनुक्षण,
- रहुक प्रवाह-रूप हैया।
- शुकदेव आदि जतो, रसनाये लेह्य कतो,
- आस्वादये जाहा सुख पाइया।।
- कैशोर चापल्य जतो, राधाके रोधन मतो,
- दानघाटि पुष्प तोला काले।
- ताहां सदा रुद्ध काजे, थाकये उत्कण्ठा साजे,
- तारा धारा बहुक अन्तरे।।
- मुखाम्ब तोमार तथा, काम मदोद्गारिस्मिता,
- तार भक्ति विशेष जे आर।
- तथा वेणुगीत गति, नव नव जन्माय रति,
- विभावित माधुर्य-मिशाल।।
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