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- “विक्रीड़ितं व्रजवधूभिरिदञ्च विष्णोः
- श्रद्धान्वितोऽनुशृणुयादथ वर्णयेद् यः।
- भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं
- हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीरः।।”[1]
- “व्रजवधूसंगे कृष्णेर रासादि विलास।
- जेइ इहा कहे शुने करिया विश्वास।।
- हृद्रोग काम तार तत्काले हय क्षय।
- तिनगुण क्षोभ नाहि महाधीर हय।।
- उज्ज्वल मधुर प्रेमभक्ति सेइ पाय।
- आनन्दे कृष्णमाधुर्ये विहरे सदाय।।”[2]।।103।।
- श्रील यदुनन्दन ठाकुर का पद्यानुवाद
- एइ देव रास क्रीड़ापर।
- जययुक्त हउ सदा, सर्वोपरि विराजिता,
- किशोर जे केबा अन्ये आर।।
- कृष्ण कहे हय हय, मोर कैशोर लीलामय,
- तोमार अभीष्ट सेइ हय।
- भालो तबे गोचारण, लीला आछे मनोरम,
- ताहा तुमि करहो आश्रय।।
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