श्रीकृष्णकर्णामृतम् -श्रीमद् अनन्तदास बाबाजी महाराज
‘रास-उत्सव में व्रजसुन्दरियों ने- जिनके कण्ठ में श्रीकृष्ण की विशाल भुजाएँ पड़ी हुई हैं- उन व्रजसुन्दरियों ने श्रीकृष्ण का जो प्रसाद प्राप्त किया है, वह प्रसाद श्रीनारायण वक्ष-विलासिनी श्री लक्ष्मीदेवी प्राप्त नहीं कर सकीं। पद्मगन्धा और दिव्यकान्ति भू, लीला आदि शक्तियों ने भी वह नहीं पाया; अन्यान्य रमणियों की बात दूर रही। श्रीलीलाशुक बोले- वैकुण्ठ में एकमात्र कमला विलासिनी हैं, वे भी दासी की तरह सतत चरणसेवा में लगी रहती हैं, इसलिए इन लक्ष्मीदेवी का भी कहाँ विलास, और कहाँ वह रसमय रास विलास !’
‘हे कृष्ण ! तुम्हारे बहुविध चरित हैं, सभी अति विचित्र, फिर भी मधुरैश्वर्यरूप सर्वोत्तम रास आदि केलि ही मेरा सेव्य है।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10/47/60
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